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________________ प्रतिक्रमणकी छ आवश्यक क्रियाए प्रतिक्रमणकी क्रियामें छह आवश्यकका समावेश होता है। १) सामायिक - दो घडीका (४८ मिनिटका),साधु जैसा चारित्रमय जीवन, सावद्ययोग-पापोकी प्रवृत्तिका बंध होना तथा मनको स्वस्थ और निर्मल रखनेकी उत्तम प्रवृत्ति २) चउविसत्थो - लोगस्स यानि चउविसत्थो अर्थात् चतुर्विंशति । चोबीस तीर्थंकरोंकी नामपूर्वक स्तवना-जिसका प्रभाव बाह्य अभ्यंतर सख, शांति और आरोग्यके साथ जीवको मुक्ति-मोक्ष तक पहुँचाता है। ३) वांदणा - गुरु-जो धर्मको जानता है, धर्माचरणका पालन करता है, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि महाव्रतोका और त्याग मार्गका पालन करनेवाले, ऐसे गुरुका बहुमानपूर्वक वंदन करना साधकका कर्तव्य है। सुगुरु वांदणासे हम यह कर्तव्यका पालन करते है। ४) पडिक्कमणुं - पापसे पीछे हठनेकी क्रिया दर्शानेवाले सूत्रो द्वारा क्षण क्षण, मन, वचन कायासे हए पाप-दोषोकी आलोचना करना, उसकी क्षमा मांगना यही प्रतिक्रमण है। ५) काउस्सग्ग - काउस्सग्गके दरम्यान शरीरकी शुश्रृषाका सर्वथा त्याग, कायाके कष्टको सहन करना, मौन और ध्यानके द्वारा वाणी और मनसे मलिन वृत्तिओंका त्याग करना है। ६) पच्चक्खाण - जीवनको संयमी बनाना, बुरी आदतोसे बचना, सदाचरणमें प्रवृत्त रहना, पापाश्रवसे अटकना। पच्चक्खाण मतलब नियमोको ग्रहण करना।
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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