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________________ ME KSHETRA PALYOPAM 392. (Q.) What is this Kshetra Palyopam ? (Ans.) Kshetra Palyopam is of two kinds-Sukshma Kshetra Palyopam and Vyavahar Kshetra Palyopam ३९३. तत्थ णं जे से सुहुमे से टप्पे। ३९३. उनमें से सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम स्थापनीय है। (अभी स्थगित रखा गया है, इसका वर्णन आगे सूत्र ३९६ में है।) 393. Of these, Sukshma Kshetra Palyopam is to be ensconced. (for now, discussed later in aphorism 396.) __३९४. तत्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयामविक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहिय-बेआहिय-तेआहिय जाव भरिए वालग्गकोडीणं। ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेज्जा, णो वातो हरेज्जा, जाव ण पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। जे णं तस्स पल्लस्स आगासपदेसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना ततो णं समए समए गते एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावतिएणं कालेणं से पल्ले खीणे जाव निट्ठिए भवइ। से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे। एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। तं वावहारियस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ ३९४. उन दोनो मे से व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए-जैसे कोई एक योजन लम्बा-चौड़ा तथा एक योजन ऊँचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला धान्य मापने के पल्य (गहरे गोल कोठे) के समान पल्य (गहरा गोल कुंआ) हो। उस पल्य को एक, दो, तीन यावत् सात दिन बढ़े हुए बालागों से इस प्रकार से ठसाठस भरा जाए कि उन बालाग्रो को न तो अग्नि जला सके, न वायु उडा सके आदि यावत् उनमें दुर्गन्ध भी पैदा न हो। उस पल्य के जो आकाशप्रदेश उन बालानों से व्याप्त है, उन प्रदेशो में से प्रत्येक समय एक-एक आकाशप्रदेश का अपहार किया जाये-निकाला जाये तो जितने काल में वह पल्य खाली यावत् रजरहित हो जाये, वह एक व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम है। ___ इन दस कोटाकोटि व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपमो का एक व्यावहारिक क्षेत्रसागरोपम होता है ॥१॥ KitKaKhesari 9098409009009-800002800ROSARODAROD - - आयुस्थिति-प्रकरण (215) The Discussion on Life-Span Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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