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________________ 8 के लिए पहले गुरु को विनय आदि से प्रसन्न करे, उनके भाव-इंगित संकेत आदि को समझकर शास्त्र पढने मे प्रवृत्त हो। उपक्रम के भी आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार, समवतार आदि छह भेद बताकर विभिन्न प्रकारों से उपक्रम को समझाया है। दूसरे निक्षेप द्वार मे नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-चार निक्षेप के आधार पर तत्त्व को समझने की विधि बताई है। तीसरा द्वार है अनुगम और चौथा द्वार है नय। अनुगम के मुख्य दो भेद बताकर उसके उपभेदो का वर्णन है। इसके बाद नयद्वार मे सात नयो की व्याख्या है। इस प्रकार अनुयोगद्वारसूत्र में चार द्वारो द्वारा शास्त्र का अर्थ समझने, उसकी व्याख्या करने की तर्क व युक्ति संगत शैली का वर्णन है। प्रासंगिक सामग्री : प्राचीन ग्रन्थों का उल्लेख ___अनुयोगद्वार मे चार द्वारो के वर्णन में अनेक प्रकार की रोचक, सास्कृतिक और ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है। इसके अध्ययन से प्राचीन भारत की धार्मिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा सास्कृतिक सामग्री विविध रूप मे मिलती है। धार्मिक और दार्शनिक सामग्री मे षड्द्रव्य का विचार, जीव के गुण, शरीर, शरीर की आकृतियाँ, सस्थान, जीवो की आयु आदि विविध प्रकार के विषयो की सयोजना है। ___ इस सूत्र में जैनेतर साहित्य के १९ प्रसिद्ध ग्रन्थो के नाम भी है। (सूत्र ४९) जैसे-रामायण, महाभारत, कौटिल्य, वैशेषिक दर्शन, बुद्ध वचन, लोकायत, पुराण, व्याकरण आदि। महाभारत और रामायण के पठन व वाचन के समय की प्राचीन परम्परा का भी उल्लेख है, किन्तु आश्चर्य है, रामायण एव महाभारत का उल्लेख करने के बाद भागवत का उल्लेख कही नही है। इससे यह ध्वनित होता है कि अनुयोगद्वारसूत्र की रचना के पश्चात् भागवत की रचना हुई है। संगीत एवं स्वर-मंडल ___ सात स्वरों का सुन्दर और ललित वर्णन इस सूत्र (सूत्र २६०) की एक अपनी विशेषता है। सामवेद मे संगीत का वर्णन है। उसी प्रकार इस सूत्र मे भी सगीत के स्वर, उत्पत्ति स्थान आदि का विस्तृत और उपयोगी वर्णन है। वर्णन की शैली अपनी स्वतत्र है। व्याकरण ___ अष्ट नाम मे व्याकरण की आठ विभक्तियो का तथा सात समासो का वर्णन व्याकरण शास्त्र के अभ्यासियो के लिए उपयोगी है। (सूत्र २२८-२३१) नवरस इस सूत्र (२६१-२६२) मे काव्य शास्त्र के नवरसो का वर्णन अपनी मौलिक स्थापना लिए है। काव्य नाटक ग्रन्थों में नवरस हैं-(१) शृगार, (२) हास्य, (३) करुण, (४) रौद्र, (५) वीर, (६) भयानक, (७) वीभत्स, (८) अद्भुत, और (९) शान्त रस। जबकि इस सूत्र में सबसे पहले वीर (10) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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