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________________ Guutuwal KA 11. Therefore the solitude-loving ascetic, striving for liberation, should become aware of these faults and avoid even the paths leading to houses of ill repute. विशेषार्थ : श्लोक ९, १०, ११. वेससामंते-वेश्यासामन्ते-उस स्थान के निकट जहाँ वेश्याएँ KA अथवा अन्य नीच स्त्रियों के निवास हों। जहाँ कामी पुरुषों का आना-जाना रहता है। (देखें चित्र संख्या स११/१) विसोत्तिया-विनोतसिका-किसी प्रवाहमान वस्तु (वायु, जल, विकार, भावना आदि) का स्रोत रुक जाने पर उसका दूसरी दिशा में मुड़ जाना और फलतः उसके स्वाभाविक प्रभाव क्षेत्र में उसके अभावजनित प्रभाव उत्पन्न होना विस्रोतसिका है। जैसे कूड़े-करकट के द्वारा जल आने का मार्ग रुक जाने से उसका बहाव मुड़ जाता है और फलस्वरूप खेती सूख जाती है। उसी प्रकार कूड़ा-करकटरूपी वेश्याओं के हाव-भाव की ओर आकर्षित होने से ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूपी प्रवाह मुड़ जाता है और फलस्वरूप आत्म-संयमरूपी खेती सूख जाती है। संसग्गीए अभिक्खणं-संसर्गेणाऽभीक्ष्णम्-बार-बार जाने से सम्बन्ध बन जाता है। संसर्ग का आरम्भ देखने से होता है और अन्त प्रणय में। इसका क्रम है-देखने से प्रीति, प्रीति से रति, रति से विश्वास और विश्वास से प्रणय। वयाणं पीला-व्रतानां पीड़ा-व्रतों का विनाश। वेश्या संसर्ग से ब्रह्मचर्य नष्ट होता है और परिणामतः सभी व्रत नष्ट हो जाते हैं। चूर्णिकार इसे समझाते हुए कहते हैं-वह चित्त की चंचलता के कारण एषणा या ईर्यापथ की शुद्धि नहीं कर पाता। अतः अहिंसा व्रत नष्ट हो जाता है। वह स्त्रियों की ओर देखता है और पूछने पर अपनी दुर्बलता छुपाने के लिए झूठ बोलता है। अतः सत्य व्रत नष्ट हो जाता है। तीर्थंकरों ने श्रमण के लिए स्त्री-संग का निषेध किया है, इस कारण वैसा करने वाला जिन-आज्ञा तोड़ता है। अतः अचौर्य व्रत नष्ट हो जाता है। अन्त में स्त्रियों के प्रति ममत्व की भावना होने से अपरिग्रह व्रत भी नष्ट हो जाता है। ___ एगंतं-एकान्तं-जीव का उपयोग एकान्त अर्थात् निर्जन स्थान में जितना स्थिर होता है उतना भीड़ या कोलाहल वाले स्थान पर नहीं होता है। बिना उपयोग के स्थिर हुए जीव का कोई भी काम भलीभाँति सफल नहीं होता। सामायिक, स्वाध्याय, जप, तप, मनन, ध्यान आदि कामों में तो उपयोग की स्थिरता की नितान्त आवश्यकता है। मुनिवर्ग के लिए ये कार्य प्रधानतम हैं। इसलिए उन्हें एकान्त अर्थात् निर्जन स्थान की अत्यन्त आवश्यकता है। इसलिए एकान्त स्थान भी मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रधान कारण है। अतः ‘एगंतमस्सिए' का jan REVIGE पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) १०५ | FOLTURE Hin शिव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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