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________________ इस आगम सम्पादन में श्रद्धेय उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. ने बहुत ही श्रम किया है । उन्हीं के निर्देशन में प्रसिद्ध विद्वान् तथा जैन चित्रमय साहित्य के मर्मज्ञ श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने एक वर्ष के सुदीर्घ परिश्रमपूर्वक इस भव्य कृति को परिपूर्ण किया है । द्वितीयावृत्ति श्री अन्तकृद्दशासूत्र का प्रथम संस्करण पाठकों तथा स्वाध्याय-प्रेमियों ने बहुत पसन्द किया। इसके साथ अन्तकृद्दशा महिमा की भी अच्छी माँग थी। अब द्वितीय संस्करण में अन्तकृद्दशा महिमा भी अंग्रेजी अनुवाद के साथ इसी में सम्मिलित कर दी गई है। अन्तकृद्दशासूत्र महिमा के अंग्रेजी अनुवाद में श्री सुरेन्द्र बोथरा का सहयोग प्राप्त हुआ। तदर्थ आपको हार्दिक धन्यवाद । चित्रकार सरदार पुरुषोत्तमसिंह का भी धन्यवाद करते हैं जिनका सहयोग हमें प्राप्त होता रहा है । इस प्रकाशन में तपाचार्या उपप्रवर्तिनी श्री मोहनमाला जी म. तथा श्रमणी सूर्या उपप्रवर्तिनी श्री सरिता जी म. की सत्प्रेरणा से सहयोग प्राप्त हुआ है । बालयोगी श्री तरुण मुनि जी म. का भी इसके संशोधन संपादन में सराहनीय योगदान रहा । पुराने संस्करण की अंग्रेजी भाषा का संपादन संशोधन आदि में श्री राजकुमार जी जैन दिल्ली ने हार्दिक सहयोग प्रदान किया है । आशा है सचित्र आगम प्रकाशन की योजना का समाज में, देश व विदेश में स्वागत होगा और यह आगम अपने आप ही अपनी उपयोगिता से जनग्राह्य बनेगा । -महेन्द्रकुमार जैन (अध्यक्ष) पद्म प्रकाशन नरेला मण्डी, दिल्ली-११0 0४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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