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________________ सात उपवास - पारणा, एक उपवास - पारणा, बेला-पारणा तेला- पारणा, चोला- पारणा, पारणा, छह उपवास - पारणा । यह तीसरी लता है। तेला-पारणा, चोला- - पारणा, पचोला- पारणा, छह उपवास - पारणा, सात उपवास - पारणा, एक उपवास - पारणा, वेला - पारणा । यह चौथी लता है। छह उपवास-पारणा, सात उपवास-पारणा, एक उपवास - पारणा, बेला-पारणा, तेला-पारणा, चोलापारणा, पचोला - पारणा । यह पाँचवीं लता है। पचोला बेला-पारणा, तेला- पारणा, चोला- पारणा, पचोला - पारणा, छह उपवास - पारणा, सात उपवासपारणा, एक उपवास - पारणा । यह छठी लता है। पचोला- पारणा, छह उपवास - पारणा, सात उपवास - पारणा, एक उपवास पारणा, वेला-पारणा, तेला - पारणा, चोला- पारणा । यह सातवीं लता है । इन सातों लताओं की एक परिपाटी होती है जिसमें कुल २४५ दिन लगते हैं। इनमें १९६ दिन तपस्या के हैं और ४९ दिन पारणे के। ऐसी ही चार परिपाटियाँ करने से इस प्रतिमा की आराधना पूर्ण होती है, जिसमें कुल ९८० दिन लगते हैं। इनमें ७८४ दिन तपस्या के और १९६ दिन पारणे के हैं। पहली परिपाटी में पारणे के दिन विगय सहित आहार लिया जाता है; दूसरी परिपाटी में विगयरहित; तीसरी परिपाटी में लेपरहित और चौथी परिपाटी में पारणे के दिन आयंबिल तप किया जाता है। इस विधि से इस महत्सर्वतोभद्र ( महासर्वतोभद्र ) प्रतिमा की आराधना विधि-विधान सहित पूर्ण की जाती है। इस प्रतिमा की आराधना आर्या वीरकृष्णा ने की थी । ७. भद्रोत्तर प्रतिमा 'भद्रोत्तर' दो शब्दों से मिलकर बना है-भद्र और उत्तर । 'भद्र' का अर्थ है - कल्याणकारी, कल्याण को देने वाला, कल्याण करने वाला और 'उत्तर' का अभिप्राय यहाँ प्रधान अथवा मुख्य है । अतः भद्रोत्तर का अर्थ प्रधान अथवा सर्वोच्च कल्याणप्रद होता है। इस निर्वचन के अनुसार भद्रोत्तर प्रतिमा साधक के लिए सर्वोच्च कल्याणप्रद है । इस प्रतिमा की आराधना पाँच दिन की तपस्या से प्रारम्भ होकर नौ दिन तक तपस्या तक चलती है। इसी कारण इसके स्थापना यंत्र में ५ से ९ तक के अंक स्थापित किये जाते हैं। इस यंत्र में ५ x ५ = २५ कोष्ठक होते हैं तथा इन अंकों का योगफल ३५ होता है। णमोकार मंत्र में भी ३५ अक्षर हैं और वह भी सभी प्रकार के तथा सर्वोच्च कल्याणप्रद्र हैं । इन दोनों में कितना अद्भुत साम्य है ! आराधना विधि - प्रस्तुत भद्रोत्तर प्रतिमा की आराधना विधि इस प्रकार है अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private Personal Use Only ३९१ www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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