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________________ पारणा, पचोला-पारणा, उपवास-पारणा; चोला-पारणा, पचोला-पारणा. उपवास-पारणा, वेला-पारणा, तेला-पारणा। यह प्रस्तुत प्रतिमा की एक परिपाटी हुई और इसमें तीन माह और दस दिन लगे। इसी प्रकार की कुल चार परिपाटियाँ होती हैं, उनको पूर्ण करने में १ वर्ष १ माह १0 दिन लगते हैं। इनमें ३00 दिन तपस्या के और १00 दिन पारणे के होते हैं। पारणे में जो आहार लिया जाता है उसके सम्बन्ध में यह नियम है कि प्रथम परिपाटी में विगय सहित (सर्व कामगुण युक्त) आहार; दूसरी परिपाटी में विगयरहित; तीसरी परिपाटी में लेपरहित आहार और चौथी परिपाटी में आयंबिल तप किया जाता है। सर्वतोभद्र आनुपूर्वी लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा का यह १ से ५ तक के अंकों का यंत्र शांति यंत्र के नाम से भी सुविख्यात है। इस यंत्र के अंकों के अनुसार नवकार मंत्र के पाँच पदों का जाप करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है। इस प्रकार के २४ यंत्रों की शृंखला सर्वतोभद्र आनुपूर्वी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस लघु सर्वतोभद्र यंत्र का विविध रूप से जैन संसार में काफी सम्मान है। ६. महत्सर्वतोभद्र प्रतिमा __पूर्व वर्णित लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा और प्रस्तुत महत्पर्वतोभद्र प्रतिमा में अन्तर इतना है कि लघु सर्वतोभद्र में उपवास से लेकर पचोला तक की तपस्या की जाती है जबकि इसमें उपवास से लेकर सात उपवास तक की। दूसरा अन्तर यह है कि लघु सर्वतोभद्र के यंत्र में स्थापित अंकों का योगफल १५ होता है; जबकि इसके अंकों का योगफल २८ होता है। प्रस्तुत महत्सर्वतोभद्र प्रतिमा के यंत्र में ७ x ७ = ४९ कोष्ठक होते हैं और लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा के यंत्र में ५ x ५ = २५ कोष्टक। समानता यह है कि अंकों को ऊपर से, नीचे से, आड़े, तिरछे किसी भी प्रकार से जोड़ने-योग करने से योगफल सदा ही समान रहता है। आराधना विधि-प्रस्तुत महत्सर्वतोभद्र प्रतिमा की आराधना विधि इस प्रकार है उपवास--पारणा, वेला-पारणा, तेला-पारणा, चोला-पारणा, पचोला-पारणा, छह उपवास-पारणा, सात उपवास-पारणा। यह प्रथम लता कहलाती है। चोला-पारणा, पचोला-पारणा, छह उपवास-पारणा, सात उपवास-पारणा, एक उपवास-पारणा, बेला-पारणा, तेला-पारणा। यह दूसरी लता है। अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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