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________________ * विवेचन-सूत्र ९७ पर टीका एवं चूर्णि में विस्तृत चर्चा की गई है। कदाचित् कोई श्रमण प्रमादवश किसी एक जीवकाय की हिंसा करे, अथवा जो असंयत हैं--अन्य श्रमण परिव्राजक हैं, वे किसी एक जीवकाय की हिंसा करें तो क्या वे अन्य जीवकायों की हिंसा से बच सकेंगे? इसका उत्तर दिया गया है-"छसु अण्णयरम्मि कप्पइ।''-एक जीवकाय की हिंसा करने वाला छहों जीवकाय की हिंसा कर सकता है। ___ भगवान महावीर के समय में अनेक परिव्राजक आदि कहते थे कि “हम केवल पीने के लिए पानी के जीवों की हिंसा करते हैं, अन्य जीवों की हिंसा नहीं करते।" गैरिक व शाक्य आदि श्रमण भी यह कहते थे कि “हम केवल भोजन के निमित्त जीव-हिंसा करते हैं, अन्य कार्य के लिए नहीं।" ___ संभावना की जाती है कि ऐसा कथन करने वालों को सामने रखकर आगम में यह उल्लेख किया गया है कि जब साधक के चित्त में किसी एक जीवकाय की हिंसा का विचार उठता है तो वह अन्य जीवकाय की हिंसा भी कर सकता है और करेगा। जल में वनस्पति का नियमतः सद्भाव है, अतः जलकाय की हिंसा करने वाला वनस्पतिकाय की हिंसा भी करता ही है। जल के हलन-चलन-प्रकम्पन से वायुकाय की भी हिंसा होती है, जल और वायुकाय के समारंभ से वहाँ रही हुई अग्नि भी प्रज्वलित हो सकती है तथा जल के आश्रित अनेक प्रकार के सूक्ष्म त्रस जीव भी रहते हैं। जल में मिट्टी (पृथ्वी) का भी अंश रहता है अतः एक जलकाय की हिंसा से छहों काय की हिंसा होती है। टीकाकार के मतानुसार 'छसु' शब्द से पाँच महाव्रत तथा छठा रात्रि-भोजन-विरमण व्रत भी सूचित किया गया है। एक अहिंसा व्रत खण्डित हो जाने पर सत्य व्रत भी खण्डित हो जाता है, क्योंकि साधक ने हिंसा त्याग की प्रतिज्ञा की थी। प्रतिज्ञा-भंग असत्य का सेवन है। जिन प्राणियों की हिंसा की जाती है उनके प्राणों का हरण करना चोरी है। हिंसा से कर्म-परिग्रह भी बढ़ता है तथा हिंसा के साथ सुखाभिलाष-काम-भावना उत्पन्न हो सकती है। ___पुढो वयं-इस शब्द के दो अर्थ किये गये हैं-(१) विविध व्रत, और (२) विविध गतियोनिरूप संसार। यहाँ दोनों ही अर्थ उपयुक्त लगते हैं। एक व्रत का भंग करने वाला अन्य सभी व्रतों को भंग कर डालता है, तथा वह अपने अति प्रमाद के ही कारण पृथक्-पृथक् गतियों में, अर्थात् संसार में भ्रमण करता है। ___Elaboration-This paragraph (97) has been discussed in detail in the commentaries (Churni and Tika). If ascetics or indisciplined mendicants belonging to other school, out of stupor, commit violence against one life-form, will they be able to avoid violence against other life-forms ? The answer given to this question is--one who १. आचा. शीला. टीका, पत्रांक १२७-१२८। आचार्य श्री आत्माराम जी म. कृत हिन्दी टीका, पृ. २८९-२९० देखें। लोक-विजय : द्वितीय अध्ययन ( १३५ ) Lok Vijaya : Second Chapter se Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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