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________________ पत्राक पत्राक विषय और प्रश्नादि विषय आर प्रनागद विषय और प्रश्नादि व अप् धनम्पति में भी असुरकुमार मरके तेज | असुरकुमारचयके तीर्थंकर पणा पावे नही, एव | यायु द्वौद्रिय प्रीदिय चतरींद्रिय मैं न उपजे यावत् मयू, तेजस्काय तेजस्काय से निकल __ शेप पाच मैं उपजे इत्यादि ५८० सीकर हाय नही धर्मसुने एव यायू मी, व | जैसे पृधिषीफाय कहा सैसे अप् वनस्पति मी नस्पतिकाय अंतक्रिया करै तीर्थकर न हो, फहना , तेजसकाय से निकल तेजसफाय मैं| पधेद्रिय तिर्यठच मनुष्य वानष्यंतर जोतिपी उपजे यावत् स्तनितकुमार ५८१ अवनिया ही करे| ५८५ | जैसे संज तेसे घायु , रीठी घरीद्री से निकल | सौधर्म देय धवके तीर्घकर होय कोई एफ जैसे मारफी में उपजे इत्यादि पन्चेंद्रिय सिर्यच प रत्रप्रभा नारकी एवं मापत्सासिछका देय ५८५ चेंद्री तियंच से निकल नारको मे उपजे इहा तक ५८२ | रत्नप्रमा फा नारकी चक्रवर्त्त होय , शर्कराममा रवप्रभा पृषिधी का नारकी निकल सीकर होम, का न होय एवं यावत्सावमी का ताकी , ति फोड एफ , एष यावत् वालुकाप्रमा पंप्रमा येच मनुष्य मानता भवनपतिध्यंतर जा पपिन्नी का नारको निकल पीकर ने डॉो मानिक सहायक, एवं यलदेय भेद यह के एभूमप्रेमी तमा पावन सप्तमी शिर्करी पृथिवीफा नारकी भी होय , एव वासु Na
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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