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________________ - पत्रांक २६९ २६६ २६६ २६६ P विपय और प्रश्नादि पत्राक विषय और प्रधनादि वक्तय्यताधिकार | २५८ | केवलज्ञानी मनुष्य के शनन्ता पर्यत्र कहे जघन्यगुण कालकादि पवेद्रिय तिर्यच पर्यव २५९ शजीव पर्यय कितने भेदे जघन्यादि आभिनियोधिकज्ञानी पचे० तिर्य० शरूपी अजीव पर्यय दशमंदे कहे हैं पर्यय | २५९ रूपी राजीय पर्याय धार नंदे कहे जघन्यावधिज्ञानी पोठिय तिर्यच पर्यय २६० | परमाणु पुद्गल पर्यय वक्तय्यताधिकार उस्कृष्टायधिज्ञानी इसीतरह से कहना २६१ / द्विप्रदशी शादि स्कन्ध पयय वक्तव्यताधिकार शयधिज्ञानी तथा विमगज्ञानी कहना २६१ / एक प्रदेशावगाढ पुद्गल पयव प्रश्न जघन्यावगाही मनुष्य के क्तिने पयायक | २६१ | एक समयस्थितिक पुनल पर्यव प्रश्नोत्तर जघन्यस्थितिक मनुष्य के फितने पर्याय एकगुण फालक पद्दल पर्यव प्रश्न जघन्यगुणकालक मनष्य के पर्याय | जघन्यावगाह द्विप्रदेशी शादि स्कन्ध पर्यव जघन्यानिनियोधिक ज्ञानी मनुष्य के पर्यव २६३ जघन्यस्थितिक परमाणुपुद्गल पर्ययाधिकार जघन्यायधिज्ञानी मनुष्य के पयय कितने है । २६४ जघन्यगुणकाठ आदि परमाणुपुद्गल पर्यवाधिक जैसे अवधिज्ञानी तेस मन पर्यय ज्ञानी |२६१।८ स्पर्श की पत्तथ्यता कहना २६९ २७० २७१ २७२ | २६२ २७५ २७६
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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