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________________ रायपसेपी। हरियाणं कूडूवागा कन्निसियागा मडियाण याताडिझताण तन्तागां तालाणा कसतालापा घडिज्मतागा गिरिसयाण लत्तिरवागा मगिरिवागा सुसमारियागा फुमिमताया वसाण चालीया वैणूण परिणीण पव्वगाणा तत्त पणास दिवेगट्टे दिवेगीए दिव्वे वाइए एव प्रभुए सिगरे उराले मणुणेगिवा मगहरंगट्टे मणुहरे गीए मणहरे बाइए उप्पिजलभूए कहकहभूए दिवे देवरमगो पव्वत्त प्राविहोत्या बाना वादनम्, दर्दर दर्दरिका कुसुम्बरकलसिका महकानामुत्ताडनम् । तलताल कसतालानामा ताडन गिरिसिकालत्तिकामकरिकाभिगुमारिकाना घटन, वगवेणुचालीपिरलीवश्वगाया फुष्कन मत उस “उह मन्ताण सखाप"मित्यादि। (तएणसे दिये गार) इत्यादि यतएव प्रगीतवन्त इत्यादि। ततोणमिनि पूर्ववत् तत् दिव्य गीत दिव्य वादित दिव्य नृत्यमभूत्तदिति योग । रिव्य नामप्रधान एव (मभुएगीए अभएवाइए अभएनढे पन्भुत)माश्चर्यकारिशृज्गारवाद, (सिगारेगा) शृगार शृगाररसीपेतत्वात् यथवा शृगार नामालष्कृत मुच्यते, तब यदन्यास्य विगेपकरण नालकृतामिव गीत वादननृत्य वा नत् शू गारमिति (उरालगीए उरालिवाइए उराल य) उदार स्फार परिपूर्णगुग्योपेतत्वात् ननु क्वचिदपि डीन, (मगुगणेगीए मणपणेवाइए मगु पये म) मनोज मनोनुकून द्रष्टुणा थोतृणाञ्च मनोनिवृत्तिकरमिति भाव', तत्व मनोनिवृत्तिकरत्व सामान्यतोपि स्यादतः प्ररुपविगेपप्रतिपादनार्थमाइ। (मगहर) इति (मगहरोगीए मणहरवाइप मणहरण) मनोहरति आत्मवश नयति तबिधामप्यति चमत्कारकारितयति मनोहर मैतदेवाह (उप्पिजलमाकुलक उपिजलभूते) आकुलके भूत किमुक्त भवति महकिदेवानामप्यतिशायि नया परमोक्षोभोत्यादकत्वेन सकलदेवासुरमनुजसमूचित्तानेपकारीति, (महाभूत) इति कहकोत्यनुकरण कहकइति भूत प्राप्त कहकहाभूत किमुक्त भवति । निरन्तर तत्तहिशेप दगनत ममुवलितप्रमोदभरपरवसकल दिग्चक्रवालवत्तिचकजनकृतनगसाबचनवीलकीला अनन्याकुनीभूतमिति अतएव दिव्य देवरमणमपि देवानामपि रमण क्रीड़न प्रवृत्त मभृत नकुलन पूछवट मुकदवाजिवन डकन चिचिकना बजाडिबउ करडनदः दहिमनड मणिकान कडवन वसप पछद्र ताडिवु दर कुस्तवान कलिसिकानद मडिकान माही माधि आरफालत्रु हाथोडानः तालना कसतालन घटवर गिरिमिकानही लतिरकानपुर मगरिकानद३ सुसमारिकानद४ फुकाउ वसनहर चालीलर वैग्गुन परिलीय पवर्तनद तहमाजिवथा तेहप्रधाननाटिक प्रधानगीत प्रधानमनिवार आवकारी गौतमनतमुहन मृगाररसिकरीसहितना कारपरिपूर्णगुणसहित देपणहारनाशीतानाण्डवाजितनाभेदलीकपोग
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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