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________________ ४१ रायपसेगी। तसि धटारव सिणिसन्तसि महवामझ्यासदृण उग्रोसेमाण एव ववामी इदसणत्त भवन्तो सूरियाम विमाणवासिण बहवे माणिया देवादेवीउय मूरियाभ वयणहिय मुहत्य अणवेइण सूरियाभेटेवे गच्छद्रण' भो सूरिवाभेदेव जबूद्दीव भारहवास आमलकप्प नवरि अवसालवण चेदय समण भगव महावीर अभिवदित्तए त तुभे विण देवाणुप्पिया सविट्टीए जावअकालए लिहणाचेव मूरिवामस्स देवस्स अतिय पुवम्भवइतत्तण से सूरियाविमाणस्ससिणो बहु वेमाणिवा देवाय देवीउपावत्ताणिया डिवईस्स टेवस्स अन्तिए घोपण भविष्यतीत्येव धीपणे कुतुहलेन दत्ती कगई यैरत धोपणकुतूहलदत्तकणा। तथा एकागघोपमा थरणेक विषय चित्त येपा ते एकाग्रचित्ता'। एकाग्रचित्तलपि कदाचिदनुपयोग स्थादत शाह, उपयुक्तमानसा स्तत' पूर्व पदे। विशेषणसमास तेषा पदात्यनीकाधिपति देव स्तस्मिन् घण्टारवंगा (निसन्ति पस तमी)ति नितराशान्त निशान्ती इत्यतिमन्दभूतातत प्रकरण सामना शान्त' प्रशान्त स्तनच्छिन्नारुढ इत्यादाविव विशेषणसमास स्तस्मिन् महतार शन्देन उद्योपयनव मवादीत् (हदसणन्तु) इत्यादि पन्तति हपे उक्तञ्च इन्त इपेऽनुकम्पाया मित्यादि विहर्षवरवामिनादिष्टवान्। थीम महावीरवन्दनार्थ च समाराभात् शृण्वन्तु भवन्तो वहद मूयाभविमानवामिनी वैमानिकदेवादेव्यश्च मूर्याभविमानपते वचन हित सुखाय चेत्यर्थ' तब हित जन्मान्तरपि कल्शणावह तथाविध कुशल सुख तस्मिन् भवे निरूपद्रवता आज्ञापयति भी देवाना प्रिया मूर्याभी देवो यथा गच्छति भी सूया भी देवी नम्बूद्वीप दीपमित्यादि तदेव यावदन्तिके प्रादुर्भवन् । (तएणते) इत्यादि तत स्ते मूर्याभविमानवासिनी बहवी वैमानिका देवा देव्यश्च पदात्वनीकाधिपते देवस्य समीये एतमनन्तरीदितमध युवा घटानसन्दद् इत्यघसमर्थक मोटर मोटदु सन्द उदघोषणाकरत उथकर एहवउवीलतउहुतउ इपद करी साभलुतुम्हे अहोमवाम विमान वासीठ घयावैमानिक देवता देविड मूयाभ देवनु वचन हितनद सुखना अधि आचाददछद मूयाम देव जादा अहदेिवताउ भी अभीआमवय सूयाभ दव जबूदीपप्रति भरतक्षेत्रप्रति आमलकप्यानगरीप्रति प्रामुसालवन चैत्यप्रति शमण भगवत महावीर नहा वादवान अर्थितमाटइ तुम्हेपणिदेवानूपियाउ सघलीमतिपरिवसा बिलवरहित अतिउतावला निश्चय मूयाम देवनदू समीपर प्रगटथाउयावउ विधारपत्री तहमूयाभ विमान वासी धगी वैमा निददेवता देवागनापायकट कनाधीन देवनइसमीपद एइअर्थप्रतिसाभलीन हिययअवधारीन इपंसतीपपाम् चित्तपाणदयकी केतलापक देवताभगवतनिवादवा नमित्त कोरक देवता पूजवान -- - - -- - - -
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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