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________________ ३८ रायपसँगी। जाविरवण नियगपरिवण सद्विसपरिवडा सातिजाणविमाणाइ टुडदासमाणा अकालपरिहीणाव मूरिवाभम्स टेवस्त मन्तिय टुभवह तण्णसे पावत्ताणियाड़िवई देव मूरिवामेण देवेण ण्ववुत्तो समाण हहनावहियण एव देवोतइति प्राणाए विणएण वयण पडिमुणेति २ ता जेणेव सूरियाभे विमाण जणेव सभा सुहम्मा मेघोघरसिय गभीरमहुसद्दा जोयणपरिमडला सुस्सरीघटा तेण व उवागच्छत्ति २ ता त मेघोघरसिय गभीर मडुरसह जोय णपरिमडल मुस्सर घट तिक्खू तो उल्लालेवतेण से मेघोघरसिय गभीर महुरसहाए जोयणपरिमडलाए सु सराघटाए तिक्खू तो उल्लालिवाए समागीए सेसूरियाभे विमाण पासायविमान यामिन वादनोत्तरकालभावी सततध्वनि स्तल्लचयोयोरवरतन (नियगपरिवारसहि सपरिखुडा) इति निजक आत्मीय यात्मीयो य परिवारम्तन साई तब सहभावपरिवाररीति मन्तरेणापि मम्मति तत भाग। सपरिव डा सम्यक् परिवाररीत्या, परिव ता (घकालपरिहीण) चे वैति परिहानि परिहीन कालपरिहीन कालविलम्ब इति भावः। न विद्यते कालपरिदीन यन प्रादुर्भवने तदकालपरिहीन क्रियाविशेषणमेतत् । (अन्तिएग्ण दुभवई) अन्तिके ममीपे प्रादुर्भव तस्य मागच्छतेति भाव । (तएणसे) इत्यादि। (जावयडिसुत्ता) इति यब यावत शब्दकरणात् "करयल परिगुहिय दसनह सिरसावत्त मत्यए अञ्जलि कटु एव देवीतइति आणाय ववणे व्ययं पड़िसूर्ण" इति द्रष्टव्य । (तिक्तत्तोउल्लालेद) इति कृत्वा स्वीन् वारान उल्लालयति ताडयति । ततोणमिति वाक्यानकार तस्यां मेघोधरसितगम्भीरमधुरशब्दाया योजनपरिमण्डलाया सुस्वराभिधानाया संटायां विकृत्व स्ताड़िताया सत्यां यत् मूयाभ विमान तत् प्रासादति पोतानयानविमान वाठायका कालविलवरहित अतिउतावला निश्चय सूयाभ देवनद समीपद पावउ तिहारयछी तेपायककटकनउधणी देव मूर्याभ देवद एहवउ कहथक पसतोपपाम्य चित्तमाहियाणन्दउ पमहदेव तुम्हार कहिउ तिमज आजादू विनयकरी मूर्याभनूवचन साभल साभलीन जिदा सूयाभ विमान जिहा सभा सुधा मेघनासमूहनउसब्दगरिव उसरीय उदु मीठुसन्दछजेहनउ जोयनप्रमानमंढतझडजेहनू मुखरानामघटाछद्र तिहाजाइ तिहाजन तेह मेहनउसमूहवेहनू गजारव तेहसरीयुउडु मीठउसन्दछडजेहनउ जीयणममायम डलछ हिनू
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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