SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ रायपसेगी। मेगणो सणवेति २ सगणवेति नामेगेनोदोति २ एगेटेति विसपण वेतिवि ३ एगेनोति नोसगणवेद ४ जाणासि तुम पएसी चउण्ड पुरिमाणको ववहारीको अववहारीहता जाणामि तत्वरा न से पुरिमे दतियो सगावेद सेणा पुरिसे ववहारी तत्वण जे से पुरिसे सनोटेद सगणवेद सेण सेण विवहारी २ तत्यगा जे से पुरिसे देति विसरण वेद विसेण ववहारी ३ तत्वया जसे पुरिसे नोदेति नोसवगणवेइ सेण अववहारी ४ एवामेव गोचेवण तुम पएसी यववही ८ तए ण पएसी राया केसी कुमार समण एव ववासी तुन्भेण भ ते अइ च्छेया टक्खा जाव उवसलट्ठा समधाण भते ममकरवतसिवा यामलय जीव सरीराउ अभिनिवट्टित्ताण दमित्तए तेगा कालेगा दुक्खरूप तया निर्मला सुखलेशेनाप्यकलडिकतेति भाव', विपुला विस्तीणा सकलशरीरव्याप प्रगाढा प्रकषय मर्मप्रदेशाव्यापितया समवगाढा कर्कशव कर्कशाकिसुना भवति। यया कर्कश पापाणसघर्ष शरीरस्य पण्डानि बोटयति। एनमात्मप्रदेशान् बोटयन्तीया वेदनोपजायते सा कद्या राजाकहछेहाहू जाणउछउ च्यार व्यवहारी कया मागधा आवद् तेहपुरुपनद अधदेव कामसार एकपणिमीठइवचनिसतीपदनही वचनद सतीपडू कोइक एकपणिमाग्सुदेशनही एक दंपणि अनवचनिपणिसतीपद एकनदेदू नवनिसतीपद ४ गुरुकहछद जावद तुला प्रदेसी एहचिहू पुरखमाहि काउणव्यवहारीउकुण अव्यहारीउ गुरड इमकधापी राजाकहद छा नाथ उउ तेधारमाहिन तेनुरुप अथीनमा गुदेवकामसारद बचनसतोपवामाटद वचनदसतोपद् तेह पुरुष व्यवहारीउ तेमाहि नेते पुरुपदेइपणि धनवच नदूपणि सतोपद व्यवहारीउ सवीकृष्ट माहि जेते पुरुष दपणि अनश्वचन पणिमतीपर ३ तेमाहि जेते पुरुपनदेव नवचनदू सतोपतह अव्यवहारीउ सर्वथापि निगू पकि ५ चितकर गुरुमहदूद इप्टात नथी सहीउ प्रदेसी प्रदेमीणइनचनिकरीजेपेदपाम्युहतउ सती प्यु माठमुनम गुरुडमदाहापशी प्रदेसी राजा केसी कुमार श्रमण प्रति वम बोल्गु तुम्हे हेपूच अतिरेक भासरनाजाय महाधिवत गुरुनुऊपदेसलाधुछडू समर्थकउ अव्यवहाराउ पतलय अपितु ीठा बचाइमरीसुमने ततीपतुनधीतुम्हीपशिमाहरइविषयू भक्तिमाननुकरनुधकु प्रथमपुरुष नीपनि बनाउतता इवनिकरी पूर्वइ जेमूढसरनु उली २ जाणिवी हेपूज्य माहराकर तलावद धामताप्रमाणद् नीवप्रतिसरीरधका बाहरिकाटी देपाडवापत यामलाप्रमाण
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy