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________________ - . . रायपसणी। . सयविया णाम णगरी होत्या रिद्भित्यिमिय' समिहात्या जाव पडि . रुवा तीसेगा' मेयविया तेणयरीए बहिया उत्तरपुरत्यिमे दिमीभाए एवण मिगवगोणाम उज्झायोडोत्या रम्मे गादणवणग्नगासे सत्वो • "ऊय पुप्फफलसमिद्धे सुसुरभि सोयलाए छायाए मवतो चैव . समणुवई पासादीएं जाव पडिलवे तत्थण सेयविवाए गवरीएं (सिवे)ति, न विद्यते गरोयस्मिन् तत् नगर तस्मिन् निंगमा प्रभूततरणिग्वर्गावास । राजा धिष्ठान नगर राजधानी पाशुप्राकारनिबहोट क्षुल्लक प्राकारोष्टत कर गई गव्यूत तृती यान्तगामान्तररहित पपडपम्। , “पदणमिवैति" पत्तन जलाधननिर्गम प्रवेश उतच । पत्तन । शकटगम्य पाटिकाभिरेवच नीमिरवतुयद्गम्य पत्तन तत् प्रचक्ष्यते। ट्रोममुखें जलनिगम प्रवेभ पनमित्यर्थः ।" आकारी हिरगयाकारादि याममातापसावमधीपलक्षित पाश्रयविशेष । सम्बन्धी यावासमागतप्रभूतजननिवेश। सन्निवेश स्तथाविधप्राकृतलोकनिवास' कि वादी• वित्यादि दत्ता आगवादिभुना सन्तप्रान्तादिकृत्वान्तपश्च भव्येनादिममाचर्य प्रत्यपेक्षा प्रमा. जनादि। “केयद अद्ध जणवण्होत्था केकयानामई अईमाव आम्रवनति गम्यते । सहि पूर्णाजानपद । केवलमई मार्यमई ञ्चानार्यमायेंण वेद प्रयोजनमिया मित्यु जनपद आसीत् (मवीउयफलसमिद्धे रमेशदावणायगासे) इत्यादि सर्व भाविभि पुप्फ फलैश्चममुद्रमत एवरम्य मणीय नन्दनवनप्रकाश नन्दनवन प्रतिम शुभसुरभिशीतलयां शयया सर्वत समनुबड (पामाइ) तपकरी स्वउ तपसुभध्यानादिक्रममाचरीकिशनई' तयारूपसाधवानद्रगुणकरीपूर्णतहन मण तपरवीन, सकलवाणान हणउएहवउकहप्तेमाहसतेहनद 'समीप एकपणि धर्मसबंधीत पायसुवचनसिद्धात साभली हियअवधारा जेणइ मूयाभद्र देवई तह प्रधान देवनौडि देवनी युति, वनउ अनुभागमामथपणउलाधपामु. अभिसमनागत हस्तमार्थधयद हवैभगवतकारक इंगौतमपहवामनराकरी थमण भगवत महावीरन भगवत गीतमप्रति आमवर्गकरी एमबील ताहुा एमुनाप्रकारद निश्चद हेगौतमतिराज तेण कालच उधारोनछिडलभागि 'एगइसमवसरब सेपद एणड जब्दीपनामहीपजिहा भरततेवर केकयानाम हत यह दस अवदसंबई अनाथ दमल्लेछनइ पामुक डुछ इतमाइकेकायाई देस भवनादिकनी हिसार तकहीदस्तिमितरवचक्रपरचक्रकृतभयरहितछसमूडछई धनवतदेस जहा केक्युद्ध देसमास यविया नाम नगरी हती दिभवनादिकानीभयरहितंधनवतातहनगरीछई नगरीनउवणकाल. कग्विउयो वायोग्यछ तेह सेवविधानद् तेनगरीन वाइरि उत्तर पूर्वदिप्रभागै इशानकुणे दूहां मृगवननाम उद्यान सूतब रग्युकछडू मेरुसंवर्धिनंदनवन सरिपूस छ भरतथि फूलफल , करी पूर्ण मुखरूपमुगध सील छायादकरी सधले निश्चद् युकद चित्तन प्रसन्न करछदू,
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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