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________________ . • . १२६ A * रायगी । पच्चकिमेण चपगवणे उत्तरेण चूयवणेतेण वगणसडा सातिरेगाइ तेरसनोयण सयसहस्सा आयामेण पचजोयणसवाइ विक्ख भेण पत्ते २ पगारपरिक्खित्ता किगहा किण्हा भासावणसड वर्ण भूथवण उत्तरेफासे) इति (सेया) मित्यादि ते वनखण्डा सातिरेकानि अर्द्धवयोदशानि साझानि arer योजनशतसहस्राणि । आयामेन पञ्चयोजनशतानि विष्कम्भत प्रत्येक प्रत्येक प्रकार परिचिप्ता पुन कक्षभूता स्तेन वनखण्डा इत्याह (किगहा किया भासा जावपडिमोवणा सुरम्मा) इति यावत करण्यादेव - परिपूर्णपाठ सूचितो “ गीला गोलोभासा हरियाहरियोमामा सीयासीयोमासा सिद्धाणिडोभासा, तिब्बातिव्वोभासा किया कियह छाया गीला गीलछाया हरिया हरियकाया सोया सीयछाया, पिडा शिडकाया घणकडियकडिकाया परममहामेह विकुरुम्बभूया तेण पाय वा मूलमन्तो कन्दमन्तो वधिमन्ती तयामन्ती पवालमन्तो पत्तमन्तो पुप्फमन्तो वीयमन्तो फलमन्तो अणुपुव्व सुजायइलव भाई परिणया oraat viereप साहविडिमा श्रयेगथर वामसुप्पसारिय श्रगेन्भ धणविपुलवद्द खन्धी पत्ता अविरलपत्ता श्रवाइयपत्ता भाया पियत्ताणिहुय जरः पण्डुपत्ता यवहिरियभि सन्त पत्तभार धयारगम्भीर दइयाणिच्च थवद्रयाणिच्च गोरियाणिव जमलियाणिच्च जुइलि याणिव वियमियाणिञ्च पखमियाणित्त्व कुसुमिय मंडलिय लवड्य धवडय मुलइय गोकिय नमलिय जुयलिय वियमिय पणमिय सुविभत्त पडिमञ्जविडसिय धरा । सुय वरहिण मयस्य मलागा कोइल कोरग भिष्मारग कोण्डल जीव जीवक यदीमुख कविलपिम्पलगकारण्ड च चक्कवाग कलइस सारस अगसुययमिहुगवियरियसद्दद्वय महरसरणाइया संपडिय दरिय भमर महुवरियडुकरपरिलेन्तकृप्पय कुसुमासवलोल महुयतुमतुमन्त गुज्जत देस भागा अभिन्तर पुष्पफला वाहिरपत्तीकत्ता पुत्तेहिय पुप्येहिय उकत्ता श्रीरोगकासाउ फला अकण्टगा यायाविह गुळगुम्ममण्डवगसोहिया विचित्तसुहके भूया । वात्रिपुष्करिणिदीहिया सुय मुनिवेसिय रम्मनाल घरा पिण्डिमनीहारिम सुगधि सुह सुरभि मणहरव गन्धइणि सुयन्ता सुहसेउकेड बहुला अग सगडरइजाखजुग्ग गिल्लिथिल्लिसोय दसमाण पडिमोवणा सुरम्मा ” इति । श्रस्य व्याख्या इ मायोवृक्षाणां मध्यमे वयसि वर्त्तमानानि पत्राणि कृष्णानि भवन्ति, तत स्तद्योगात् वनखण्डा अपि कृष्णा न चोपचारमावात कृष्णा इति व्यपदिश्यन्ते किन्तु तथा प्रतिभासनात तथा चाह कृष्णावसायावतिभागे कृष्णानि पत्राणि सन्ति तावतिभागे ते वनखण्डा कृष्णा अवभास ते झाझरी साढीबारलाखजीयनलानपणे पाचसेनीयन पिहूलमुद्र प्रत्येकरच्याखिली कट करी वेष्टितळडू तेह्रवनपडनवापणरथकी कालवणविक कालीकइकातिजहनी वननउ वर्णकउचाइ नूवधकीज्ञागवड तेहवनख माहि घण्ट सम् रमणीक भूमिनववदेश के जेहा कथा तेह यथा
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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