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________________ तेरापंथ-मत. समीक्षा। ___ कहनेका मतलब कि-अभिगमकीरुचि, केवल सूत्रोंसे ही नहीं होती, परन्तु प्रकरणोंसे लेकरके यावत् दृष्टिबाद पर्यन्तके जो सूत्र हैं, उनके पढनेसे होती है। इससे भी सिद्ध होता है कि सूत्रके सिवाय और भी शास्त्र मानने चाहिये । ऐसे ऐसे पाठ होने पर भी वे लोग उन पाठोंके मुताबित नहीं चलते हैं। अब कहाँ रहा बत्तीस सूत्रोंको मानना? बत्तीस सूत्रोंके कथनानुसार भी चलते हों तो उन लोगोंको नियुक्ति वगैरह अवश्य मानने ही चाहिएं। अच्छा, अब यदि वे, सूत्रों के अर्थ, मूल अक्षरोंसे ही निकालते हों, तो वह उनकी बडी भारी भूल है । सूत्रोंके अर्थ, माचीन ऋषि लोगोंकी परंपरासे जो चले आये हैं वैसे, तथा अर्थ करनेकी जो रीति है उसीसे करने चाहिये । यह बात हम ही नहीं कहते हैं, परन्तु खास सूत्रकार फरमाते हैं। देखिये अनुयोग द्वारके ५१८ वे पृष्ठों लिखा है:____“ आगमे तिविहे पन्नत्ते, सुत्तागमे १, अत्थागम्मे २, तदुभयागमे ३" अर्थात् सूत्रके अक्षर यह सूत्रागम प्रथम भेद हुआ। अर्थ रूप आगम, जिसमें टीका-नियुक्ति वगैरह है, यह दूसरा भेद हुआ। और तीसरे भेदमें सूत्र तथा अर्थ दोनों आये। इससे भी सूत्रोंके वास्तविक अर्थप्राप्त करनेके लिये टिका"नियुक्ति वगैरहकी सहायता अवश्य लेनी पडेगी। अब यदि कोई यह घमंड रक्खे की-हम मूल सूत्रके अक्षरोंसे उनके यथार्थ अर्थोको प्राप्त कर सकते हैं, सोपा
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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