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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। wwwwww - 'घी खिचडी' के दृष्टान्तसे आप लोग समझ गये होंगे कि-संस्कृत व्याकरणादि नहीं पढनेसे कैसी कैसी अवस्था होती है ? और व्याकरणादिके पढनके अनन्तर कैसी पोल निकल जाती है ? । इस लिये जहाँ तक हमारे तेरापंथीभाई व्याकरणा- . दि नहीं पढ़ेंगे, वहाँ तक परमात्माके सच्चे मार्गसे विमुखही रहेंगे। महानुभाव तेरापंथी भाइयो ! अब भी कुछ समझजाओ और विद्याध्ययन करके स्वयं ज्ञान प्राप्त करो। लकीरके फकीर मत बनो । अगर पशुओंकी अपेक्षा आप अपनेमें कुछ भी अच्छी बुद्धि समझते हो तो उस बुद्धिका उपयोग, तस्वके विचार करनेमें करो। गदहेका पूंछ पकडा सो पकडा, ऐसा मत करो । स्वयं अपनी बुद्धिसे सार असारका, तत्व-अतत्वका, अच्छे-बुरेका विचार करो। जो बात अच्छी लगे, उसको ग्रहण करो । शास्त्रविरुद्ध कल्पनाओंके द्वारा अनन्त संसारी मत बनो । जी तो चाहता है कि तुम्हारी सभी शास्त्रविरुद्ध कल्पनाओंका खण्डन किया जाय । परन्तु जो खण्डित है, उसका खण्डन क्या करना ? । तुम्हारे मन्तव्योंमें प्रत्यक्ष निर्दयता दिखाई दे रही है-प्रत्यक्ष अधर्म प्रतिभासित होता है, तो फिर उसके खण्डनके लिये अधिक कोशिश करनेकी आवश्यकता ही क्या है ?। और बहुतसी तुम्हारी अज्ञानता, तुम्हारे तेईस प्रश्नोंके उत्तरमें दिखलाई ही गई है, इस लिये अधिक न लिख करके यही लिखना काफी समझते हैं किकुछ पढो और ज्ञान प्राप्त करो, जिससे तुम्हें स्वयं मालूम हो जायगा कि तुम्हारे भीखुनजीने तथा और साधुओंने जोर परूपणाएं की हैं, वे सब शास्त्रविरुद्ध हैं। उन लोगोंने तुमको अपनी जालमें फँसा करके दुर्गतिमें लेजानेकी कोशिशकी है।
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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