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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । मैं आपसे एक और बातकी याचना करता हूँ। वह यह है कि-आप मेरे पास एक वर्ष पर्यन्त संस्कृतका अभ्यास करिये। में आपका अधिक समय नहीं लूँगा । सिर्फ घंटे डेढ घंटेमें मूल २ वातको समझा-गा।" - राजाने इस बातको स्वीकार किया । और हमेशा थोडी थोडी संस्कृत पहने लगा । राजे महाराजाओंकी बुद्धि स्वाभाविक सुंदर तो होती ही है । बस, थोडे ही दिनोंमें गद्य-पद्यका अर्थ राजा स्वयं करने लगा एक दिन पंडितजी परीक्षा लेने लगे । उस समय पंडितजीने वही 'शान्ताकारं पद्मनिलयं' पदवाला श्लोक राजाके सामने रक्खा और कहा:-'राजन् ! अब इसका अर्थ करिये.' - राजा 'शान्त आकातवाले, पद्म है स्थान जिसको इस प्रकार जैसा चाहिये, वैसा अर्थ करने लगा । तब पंडितजीने कहा:-'नहीं महाराज, इसका सच्चा अर्थ करिये ।' राजाने कहा:-'पंडितजी महाराज, इसका दूसरा अर्थ होताही नहीं है।' पंडितजी पोले:-'महाराजाधिराज, इसका 'घी खिचडी' तो अर्थ नहीं होता है ?' राजाने कहा:-'वाह ! पंडितजी महाराज ! ऐसा अर्थ कभी हो सकता है। पंडितजीने कहा:-'बस, महाराज! ख्याल करिये कि आपने कितने पंडितोंका अपमान किया । और कैसा अनर्थ किया। ऐसे बचन सुनते ही राजाने, उस मूठे अर्थ दिखलाने पाले पुरोहितको कैद करनेको आज्ञा फरमाई। उसकी सारी मिलकत तथा आमदनी वगैरह छीन ली। और सत्य अर्थके प्रकाश होनेसे अपनी अज्ञानताको धिकार देने लगा।"
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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