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________________ ११ तेरापंथ मत समीक्षा | ४ श्रावकको भी दान देनेमें पाप लगता है । ५ श्रावक शहर के कटोरे के समान तथा कुपात्र हैं । इस लिये उनको दान देनेमें तथा धर्मके उपकरण देनेमें भी धर्म नहीं है। • इनके सिवाय अनेकों मन्तव्य शास्त्रविरुद्ध प्रकाशित किये हैं। पाठकोंने हमारे तेरापंथी भाइयोंकी दयाकी परा काष्ठा ऊपरसे देखली होगी। क्या उनलोगोंको कोईभी मनुष्य जैन कहने का दावा कर सकता है ? कभी नहीं । परमात्मा महावीर देवने साधुओं को तथा गृहस्थों को ऐसी निर्दयता रखना फरमायाही नहीं । परन्तु ठीक है, जो लोग संस्कृत व्याकरणादिको तो पढते नहीं, और टब्बाटब्बीसे अपना कार्य निकालना चाहते हैं, वे ऐसे २ झूठे अर्थ करके सत्यमार्ग से परिभ्रष्ट हो जायँ तो इसमें आश्चर्य ही क्या ? | याद रखना चाहिये कि - सिवाय व्याकरणादि पढने के सूत्रोंके वास्तविक अर्थ नहीं प्राप्त हो सकते । और जो लोग नहीं पढे हुवे होते हैं, उनको जैसा - भूत लगाया जाय, वैसा लग सकता है । जैसे ' घी खिचडी ' : 1 का दृष्टान्त । घी खिचडीका दृष्टान्त. 44 एक विद्यानुरागी राजा न्यायपूर्वक राज्य करता था, और उसके पास एक विद्वान् पुरोहित भी रहता था । अतएव उसकी प्रशंसा देश - विदेशमें हुआ करती थी । हजारों विद्वान् उस राजा के पास आकरके, अपनी विद्याका माहात्म्य दिखाकर लाखों रूपये इनाममें ले जाते थे । कालकी विचित्र महिमा है । वह अपना कार्य बराबर बजाया ही करता है । इसी
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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