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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । wwwwwwwwwwwwwwwwwww.mmmmmmmmm २ बिल्ली, मूसे [ ऊंदर ] को पकडती हो, और अगर उसको छुडाया जाय, तो भोगान्तराय लगे । इसी तरह और भी कोई हिंसक जीव, कीसी दुर्बल जीवको मारता हो और छुडाया जाय, तो भोगान्तराय लगता है,। .३ असंयति जीवका जीना नहीं चाहना ।. ४ मरते हुए जीवको जबरदस्तिसे यानी शरीरके व्यापारसे बचावे तो पाप लगे। ५ जीवको मारे उसको एक पाप लगे और बचावे उसको अठारह पाप लगें। ६ साधुको कोइ दुष्ट फांसी दे गया हो, और कोइ दया. वंत उस फांसीसे साधुको बचावे, तो उसको एकान्त पाप लगे। ७ दुःखी जीवको देखकरके विचार करना कि-'अहो ! यह अपने कमसे दुःखी हो रहा है। उसके कर्म तूटे तो अच्छा' बस, ऐसी चिंतवना करे, उसका नाम अनुकंपा है। भोजनवस्त्र वगैरह दे करके उस जीवको सुख उपजाना नहीं चाहिये । प्रिय पाठक ! हमारे तेरापंथी भाइओंकी दया के, नहीं नहीं निर्दयताके नमूने आपने देखलिये । अब उनके दान विषयक कुछ नियम देखिये । दानके विषयमें. १ साधुको छोडकरके किसी (गरीब-रंक दुर्बल-दुःखी वगैरह ) को दान देने में एकान्त पाप लगता है। २ महावीर भगवंतने असंयती-अव्रतियोंको वरसी दान दिया जिससे उनको बारह वर्ष [ फोडा ] दुःख पडा । ३ साधुके सिवाय पुण्यका क्षेत्र कहीं भी नहीं है ।
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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