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________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह सामने एक दल सन्यास के रूप में खड़ा हुआ और यह सख्त विरोध करता था। ____ इधर कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के बुद्ध नामक राजकुमार ने जैनाचार्य पेहित मुनि के पास जैन दिक्षा ली, और बहुत असे तक तपश्चर्या की पर बाद में उनका दिल तपश्चार्य से हटगया और अकेला ही रहने लगा, इसके बाद इन्होंने अपने नाम से बोध धर्म चलाया । यद्यपि बोध ग्रन्थों में स्पष्टरूप में यह उल्लेख नहीं मिलता है कि बुद्ध ने जैन दीक्षा ली थी। तथापि इस बात को सिद्ध करने में थोड़े बहुत प्रमाण मिल भी सकते हैं। . . . (१) श्वेताम्बर समुदाय का आचारांग नामक सूत्र की शिलांगा ...चार्य कृत टीका में लिखा है कि बुद्ध ने पहले जैन दीक्षा ली थी। (२) दिगम्बर समुदाय का दर्शनसार नामक ग्रन्थ में भी यहीं लिखा है। (३) बुद्ध ग्रन्थों में बुद्ध का भ्रमण समय का उल्लेख करता “महा नियठी" ग्रन्थ में लिखा है कि एक समय बुद्ध "सुपास" वस्ति में ठेहरा था इस से यही सिद्ध होता है कि बुद्ध प्रारम्भ समय में जैन था और जैनों के सातवाँ तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के मन्दिर में ठैरा था। (४) बुद्ध ने अपने धर्म में जो अहिंसा को प्रधान स्थान दिया .. है यह भी जैन धर्म की असर का ही परिणाम है। (५) बुद्ध ने आत्मा को क्षीणक भाव मानी है जो जैन . सिद्धान्त में "द्रव्य गुण पर्याय" द्रव्य सास्वता और पर्याय समय समय बदलता है तो वुध ने द्रव्य को पर्याय
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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