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________________ पाटलीपुर का इतिहास तीत सफलता भी प्राप्त की। आपके पद पर आचार्य हरिदत्तसूरि बड़े ही प्रभावशाली हुए उन्होंने यज्ञ वादियों के जाल को हटाने में खूब ही परिश्रम किया। एक समय आप स्वस्ति नगरी में पधारे वहाँ वेदान्तिक लोहित्याचार्य और साथ में उनके ५०० शिष्यों को दीक्षा दी। उन्होंने शास्त्राभ्यास करने के बाद महाराष्ट्रिय प्रान्त में धर्म प्रचार निमित्त बिहार किया और यज्ञादि में मूक् प्राणियों की होती हुई घोर हिन्सा को खूब जोरों से रोका और वहाँ के निवासियों को अहिंसा परमोधर्म और स्याद्वाद की शिक्षा देकर जैनधर्मी बनाये उनके आत्म कल्याणार्थ जिनालय और मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी करवाई। आपकी आज्ञावृति बहुत से साधुओं ने चिरकाल तक उस प्रान्त में बिहार कर जैन धर्म को राष्ट्रीय धर्म बना दिया। आपके पद पर आर्य समुद्रसूरि हुए आप भी धर्म प्रचारक वीर थे वेदान्तियों की हिंसा रोकने में आपने भरसक प्रयत्न किया और आपने कई अन्य प्रथाए में बहुत कुछ सुधार करवाया । तथापि यज्ञवादियों का वेग कई कई प्रान्तों में बढ़ता ही गया। आपके पद पर श्रीमान् केशीश्रमणाचार्य महान् प्रभाविक और अद्वितीय धर्म प्रचारक हुए आप उज्जैन नगरी के बाल ब्रह्मचारी राजकुमार थे । वाल्यावस्था में आपने माता पिता के साथ जैन दीक्षा ग्रहण की थी । ज्ञानाभ्यास और पूर्ण योग्यता हासिल कर आचार्य पद प्राप्त किया आपने अनेक राजामहाराजा को अहिंसा का उपदेश देकर जैन बनाया। इतना ही नहीं पर श्वेताम्बिका नगरी का नास्तिक शिरोमणि राजा प्रदेशी को भी आपने प्रतिबोध कर जैन धर्म का परम उपासक बनाया एवं आपके आज्ञावृति हजारों मुनि प्रत्येक प्रान्त में विहार कर जैन धर्म का प्रचार कर रहे थे। इधर यज्ञ हिंसा के
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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