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________________ श्री पं. देवरभट शर्मा न्यायाचार्य ने ताडपत्रीय कन्नड़ प्रति का आद्यन्त वाचन ही कहीं किया, अपितु सम्पादन में भी अपने वैदुष्य से पूरा पूरा सहयोग दिया है। पं. महादेवीजी चतुर्वेदी, पं. लोकनाथजी शास्त्री मुडबिद्री ने ताडपत्रीय प्रतियों को भेजा है। श्री पं. नेमीचन्द्रजी आरा, पं. जुगुलकिशोरजी मुख्तार सरसावा आदि महानुभावों ने अपने अपने ग्रन्थ-भण्डार की प्रतियाँ सम्पादनार्थ दीं। मैं इन सबका आभार मानता हूँ। ज्ञानपीठ का अन्य कार्य देखते हुए इन चार वर्षों का समय जितनी भी निराकुलता से इस ज्ञानयज्ञ में लग सका है उसका बहुत कुछ श्रेय. ज्ञानपीठ के कर्ममना मन्त्री श्री अयोध्याप्रसादजी गोयलीय को है। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को सँभाल कर भी कार्य में मुझे सदा उन्मुख रखा है। प्रत्येक कार्य सामग्री से होता है। मैं उस सामग्री का एक अंग हूँ, इससे अधिक कुछ नहीं। -महेन्द्रकुमार जैन मार्गशीर्ष शुक्ल १५ वीर संवत् २४७५
SR No.007279
Book TitleNyayvinischay Vivaran Part 01
Original Sutra AuthorVadirajsuri
AuthorMahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages618
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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