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________________ परिचय विजय दोशी, शार्लोट, नोर्थ केरोलीना, यू.एस.ए. 1967 में Structural Engineering के अभ्यासार्थ | अमेरिका जाने के बाद 1983 में भारत, स्थाई निवास हेतु पुनः आना हुआ / लगभग डेढ़ वर्ष पश्चात् पुनः यू.एस.ए. जाना हुआ / निमित्त बलवान हैं / शार्लोट में 1971 से आज तक जीवन व्यतीत हो रहा है / जैन धर्म के प्रति रूचि पूर्व से ही थी, जो कि उत्तरोत्तर अभिवृद्धि प्राप्त करती गई। तत्वार्तं सूत्र, कर्म ग्रंक्ष तथा अन्य जैन सिद्धांतों का स्वाध्याय जीवन को आध्यात्म संवर करता रहा / आपके समक्ष 'श्रुत भीनी आँखों में बिजली चमके' पुस्तक प्रस्तुत करते एक स्वप्न की पूर्णता सम आनंद उल्लास की अनुभूति हो रही है / 'जैनम् जयति शासनम्” "श्रुत भीनी आँखों में बिजली चमके" परम पूज्य गुरुदेव श्री हरिशभद्र विजयजी महाराजा सा. के शब्दों में, श्रुत - अर्थात् सम्यग्ज्ञान / मोक्ष मार्ग का परिचय / भीनी आँखों - ज्ञान का अध्ययन करने वाले के नेत्र, जनम-मरण सुधारने के लिए भीनी (भीगे) होवे, वह अत्यन्त आवश्यक है बिजली चमके - मेघ-वर्षा का आगमन, बिजली की चमक से समझ सके वैसे ज्ञान के अनुभव से, मनन, चिंतन से जीवन में जागृति आए और आत्मा परमात्म पद की अधिकारी बने वह निश्चित हैं इन शुभभावों के सृजन रूप प्रस्तुत ग्रंथ वर्ग के सर्व जीवों को शुभानुबंध का निमित्त बने यही अंतर की अभ्यर्थना ... श्रुत भीनी आँखों में बिजली चमके वीतराग की वाणी का झांझर झमके /
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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