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________________ इसे ध्यान से विचारें (पू. आचार्यदेव श्री विजय रामचन्द्रसूरिजी म.सा. के प्रवचनों में से उद्धृत) भगवान का संघ जगत का ज्वाजल्यमान हीरा है । बनियों का टोला एकत्र होकर संघ बन जाए और स्वयं को पच्चीसवाँ तीर्थंकर कहे, ऐसा पच्चीसवाँ तीर्थंकर तो चौबीस तीर्थंकरों की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं । ऐसे आज्ञाविहीन टोले से कभी संघ नहीं बनता है । * कम खाना यह अच्छा, गम खाना यह भी अच्छा, परंतु सत्य का साथ छोड़ना यह खराब । असत्य को स्वीकारना यह तो इससे भी खराब । सत्य और असत्य के मध्य समाधान न हो । पैसों की लेन-देन में समाधान हो । कारण यह है कि यह छोड़ने जैसी वस्तु है । * सत्य छोड़ने जैसी वस्तु नहीं है । सत्य छोड़ने में नाश है । भगवान के समवसरण में विराजते 363 पाखंडीयो में से एक के भी साथ भगवान ने समाधान नहीं किया । उनके साथ एकता के प्रयास भी नहीं किए। दो और दो चार होते हैं, इसे जो स्वीकारे उसके साथ ही समाधान हो सकता है। पांच या तीन बोले उसके साथ कभी नहीं होता । ऐसी श्री जिनेश्वर प्रभु की वाणी प. पू. श्री विजय रामचन्द्रसूरिजी म.सा. के दिल में आणी । 10
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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