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________________ JUGGUGUGUGGGGGGGGGG दोनों राह की जानकारी पूरी होने के बाद ही सुख-दुःख के हिसाब से जीवन जीना सार्थक होता है। पाप हो जाए तो रोते-रोते पाप करना और प्रायश्चित करना कभी भूलना नहीं। जाति भव्य :- जाति से भव्य, नियति से मजबूर कभी भी अव्यवहार राशि में से बाहर न आ सके ऐसे भव्य जीव (ब्रह्मचारिणी साध्वीजी के समान)। भव्य :- संयम जीवन की सामग्री के संयोग से मोक्षफल की प्राप्ति करे ऐसी आत्मा। अभव्य :- वंध्या स्त्री के समान, सामग्री होते हुए मोक्ष न जा सके। भारकर्मी भव्य :- घने कर्म बंधन के बोझ से दबी हुई आत्मा । जैसे - दृढ़ प्रहारी, अर्जुन माली, चिलातीपुत्र आदि। दुर्भव्य :- कई भवों के बाद मोक्ष जाने वाली आत्मा। आसन्न भव्य :- निकट भव में मोक्ष जाने वाली आत्मा। ७050505050505050505050505050218900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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