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________________ वैसी योग्यता नहीं होती । पानी में (जावण) जमावण डालने से दही नहीं जमता, प्रत्यक्ष तीर्थंकर देव की देशना श्रवण करने के बाद भी अभवि जीव में मोक्ष जाने की योग्यता नहीं आती है । अभव्य का उपदेश सुनकर 500 शिष्य मोक्ष जाते हैं ऐसा हो सकता है किन्तु स्वयं मोक्षजा ही नहीं सकता । * हम भव्य हैं या अभव्य ? पालीताणा - शत्रुंजय तीर्थ की जिसने यात्रा की है वह भव्य ही है। जिसके मन में यह प्रश्न उठता है कि मैं भवि हूँ या अभवि - तो वह जीव भी भव्य ही होता है । ढा. त. छोटा बालक अपनी माँ से पूछता है कि 'माँ तोतला हूँ या बोलता हूँ ?' तो बोलता है तभी तो प्रश्न पूछ रहा है, अन्यथा प्रश्न पूछ ही नहीं सकता । भवि तो भवि ही रहता है, अभव्य - अभव्य ही रहता है । मुख्य रूप से इसका कारण 'स्वभाव' है। मूंग को करडू किसने बनाया ? तो कहना होगा - उसका स्वभाव है । क्योंकि आग पर कितना ही पकाया जाए व लेकिन वो मूंग नहीं सीजता, ठीक ऐसे अभवि को कितना ही उपदेश दो, किन्तु वह भव्य नहीं होता । अभवि - अभवि ही रहता है । संसार में धर्मी से पापी अधिक दिखाई देते हैं; फिर भी देखा जाता है कि - अभवि से ज्यादा भवि जीवों की संख्या अनंत गुना होती है । असंख्यात संख्या के 9 प्रकार हैं । पूर्व पूर्व के (प्रथम-प्रथम) असंख्यात करते बाद - बाद के असंख्यात बड़े (स्थूल से स्थूल) बड़े होते जाते हैं । नो से नो असंख्यात की गणना करते फिर अनंत आ जाते हैं । अनंत के भी 9 प्रकार हैं । इस विषय में 9 के अनंत प्रमाण में कोई भी वस्तु या पदार्थ नहीं है; इसलिए विश्व की सभी आत्माएँ 8वें अनंत जितनी कही गयी है । उसमें से चार अनंता आत्मा अभव्य है। पांचवें अनंत आत्माएँ मोक्ष गई । पांचवे अनंत आत्माएँ भव्य हैं । 1 सूई के अग्रभाग में रहे इतने बटाटा प्याज आदि कंदमूल के कणों में भी आठवें अनंत जितने जीव होते हैं । इसीलिए जैन धर्म में कंदमूल खाने का निषेध किया गया है । कंदमूल खाना महापाप का कारण है । मानव जीवन प्राप्त होने के बाद पापकर्म का मार्ग कौन सा है यह समझ लेना चाहिए और पुण्य प्राप्ति का मार्ग कौन सा है यह भी जानने की आवश्यकता है 217
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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