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________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ रोचक कथा - अणगार मार्ग गति उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन 35वाँ सुधर्मा स्वामी - प्रभु महावीर के पंचम पट्टधर गणधर थे। वह स्वयं के पट्टधर जंबूस्वामी को समझाते हैं : भगवान महावीर की स्वयं की अंतिम देशना की वाणी सूत्रबद्ध हुई वह उत्तराध्ययन के रूप में विश्व में विख्यात बन गई और सम्मान को प्राप्त हुई । उसका 35वाँ अध्ययन 'हे आयुष्यमान् जंबु ! तुझे समझाता हूँ।" अणगार - अर्थात् अगार के बिना, अगार अर्थात् घर, भवन, निकेतन, निवास, आवास, आश्रय, स्थान, मुकाम, आयतन, आलय, निलय, ये सब घर के नाम हैं। अणगार शब्द वेधक और सूचक हैं, सांकेतिक है । यह शब्द जैन ग्रंथों के अतिरिक्त अन्य कहीं उपलब्ध नहीं होगा। साधु होने के लिए जो घर छोड़े वह अणगार कहलाता है। जीव को घर का बहुत आकर्षण (मोह) होता है । दुनिया का अंत घर कहलाता है । मनुष्य घर में संग्रह करना ही सब कुछ मानता है। घर भरने में और सजाने में पूरी जिन्दगी खपा देता है। अन्य धर्म में घर को गृहस्थाश्रम कहा गया है । जीवन के 4 आश्रम बताए हैं - गृहस्थाश्रम, ब्रह्मचर्याश्रम, वानप्रस्थाश्रम और अंत में सन्यासाश्रम । सभी साधना पद्धति में घर-परिवार को छोड़े बिना आत्मा पूर्ण साधन नहीं हो सकता। यह प्रत्येक भारतीय धर्म में निर्विवाद रूप में स्वीकार किया गया है। अपना शरीर भी असंख्य जीव जंतु का घर है । इसलिए शरीर को आयतन भी कहा गया rtic ___ बहुत बड़ा प्रश्न यह है कि यह घर क्या है ? वास्तव में यह घर किसका है ? इसमें माल क्या है ? जिसने .... सभी इसको मेरा-मेरा कहते हैं । अशांति खड़ी करते हैं । घर बहुत अच्छा सजाते हैं परन्तु शांति से रहने की कोई कला या व्यवस्था मनुष्य के पास जानने में नहीं आई । कोई किसी को निकाल देता है, कोई किसी को छोड़कर चला जाता है । ७०७७०७00000000000111050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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