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________________ बारह भावना ' 'भावना' का मिहितार्थ है वारंवारता - पूर्वक मानसिक चिंतन जिसमें चित्त को लगाया जाता है। ये अनुप्रेक्षायें बारह होती हैं। इनका पारंपरिक विवरण तो इन्हें लगभग नकारात्मक रूप देता प्रतीत होता है, लेकिन गुरुदेव चित्रभानु ने इनकी पर्याप्त सकारात्मक व्याख्या की है। हम यहां दोनों प्रकार की व्याख्याओं को सहयोजित करेंगे। उपरोक्त बारह भावनायें निम्न हैं: 1. अनित्यत्व: हमारे चारों ओर विद्यमान सभी चीजें अस्थायी हैं, कुछ केही समय रहने वाली हैं। लेकिन इस परिवर्तनशील जगत् में केवल एक ही स्थायी वस्तु है आत्मा । 2. अशरणत्व : मृत्यु के समय हमारा कोई शरण या रक्षक नहीं होता, लेकिन अंदर एक अदृश्य एवं आंतरिक बल सदैव रहता है। 3. संसार या पुनर्जन्म का चक्र : यह संसार दुखमय है। इसमें जन्म और मृत्यु का चक्र चलता रहता हैं। इस चक्र से मुक्ति भी संभव है। 4. एकत्व जब मनुष्य संसार चक्र से पार होता है, तब वह नितांत अकेला ही रहता हैं। इसलिये उसे आत्मनिर्भरता का अभ्यास करना चाहिये । * चित्रभानु (1981) मरडिया (2004) For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk 49 5. अन्यत्व हमारा शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न हैं। हम केवल शरीर मात्र या भौतिक ही नहीं हैं। हमें आत्मा के अस्तित्व की अनुभूति के माध्यम से जीवन का सही अर्थ समझना चाहिये । 6. अशुचित्व: हमारा शरीर अनेक प्रकार के अपवित्र पदार्थों से बना हुआ है। यहां तक कि भौतिकतः अत्यंत आकर्षक शरीर में अनेक प्रकार के अपवित्र पदार्थ रहते हैं। 7. आस्रव: हमें इस पर विचार करना चाहिये कि कर्मों का आस्रव किस प्रकार होता हैं और हम दूर रह कर इसे कैसे अनुभव करें या अवलोकित करें ? 8. संवर: कर्मों का आस्रव कैसे रोका जा सकता हैं ? इस आस्रव द्वार को कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है जब कषायरूपी तूफान तेजी से आने वाला हो ? 9. निर्जरा : आत्मा से सहचरित कर्म- पुद्गलों को कैसे दूर किया जा सकता हैं जिससे आत्मा शुद्ध रूप को प्राप्त कर सके और वह स्थायी तात्विक अवस्था (मोक्ष) को प्राप्त कर सके ? 10. लोक यह त्रिस्तरीय विश्व अनादि है, किसी के द्वारा निर्मित नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी दुख - विमुक्ति के लिये स्वयं ही उत्तरदायी है क्योंकि इस प्रक्रिया में सहायता के लिए कोई सर्वशक्तिमान् ईश्वर नहीं है। For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk 50
SR No.007275
Book TitleJain Thoughts And Prayers English Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Mardia
PublisherYorkshire Jain Foundation
Publication Year2017
Total Pages52
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size7 MB
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