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________________ क्या मैंने दूसरों को चोरी करने के लिये प्रोत्साहन या अनुमोदना की क्या मैं स्वार्थी, भयभीत, असुरक्षित या प्रतिस्पर्धी रहा? क्या मैंने अपने शरीर में आहार-आदि के द्वारा हानिकारक पदार्थ ग्रहण किये ? (अधिक चीनी आदि) क्या मैंने सिनेमा, टी.वी. पुस्तको के या कुसंगति के माध्यम से अपने मस्तिष्क में हिंसकता का समावेश किया ? क्रोध, मान, और लोभ पर ध्यान कीजिये। 2. सत्य क्या मैं स्वयं या अन्य के प्रति मन, वचन, काया से सत्यवादी रहा? क्या मैंने दूसरों को असत्य बोलने के लिये प्रोत्साहन या अनुमोदना की? क्या मैंने व्यक्तिगत लाभ के लिये तथ्यों को विकृत या अधिकीकृत किया? क्या मैंने अपनी इच्छापूर्ति के लिये चापलूसी या बहानेबाजी की? मैं जो कुछ भी बोलूंगा, सत्य ही होगा। लेकिन मैं सभी सत्य प्रकट नहीं करूंगा। सत्य से हिंसा नहीं होनी चाहिये। माया पर ध्यान कीजिये। 3. अस्तेय क्या मैंने मन, वचन या काया से ऐसी वस्तु ग्रहण की जो मुझे न दी गई हो? क्या मैंने घूस ली? असुरक्षा पर ध्यान कीजिये। 4. ब्रह्मचर्य क्या मैंने मन, वचन और काया से ब्रह्मचर्य का पालन किया ? क्या मैंने दूसरो को इंद्रिय-विषयों में अनुरक्त होने की प्रेरणा या अनुमोदना की? क्या मैंने मैथुनी क्रियाओं में अपनी ऊर्जा नष्ट की ? क्या मैंने अपनी मैथुनी ऊर्जा का दुरुपयोग किया ? ईमानदारी पर ध्यान कीजिये। 5. अपरिग्रह क्या मैं मन, वचन एवं काया से अपरिग्रही रहा? क्या मैंने दूसरों को परिग्रह एवं अर्जन हेतु प्रेरणा या अनुमोदना की क्या मुझे दूसरों के प्रति या वस्तुओं के प्रति परिग्रही राग है ? क्या मेरे चारों ओर ऐसी वस्तुयें हैं जिन्हें मैं न तो काम में ले रहा हूं और न ही एकत्र कर रहा हूं? क्या मैंने ऐसी वस्तु खरीदी जिसकी मुझे आवश्यकता नहीं थी? लोभ और ईर्ष्या पर ध्यान दीजिये। For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk 47 For Private & Personal Use Only www.yjf.org.uk
SR No.007275
Book TitleJain Thoughts And Prayers English Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Mardia
PublisherYorkshire Jain Foundation
Publication Year2017
Total Pages52
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size7 MB
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