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________________ ( ७ ) समझे-बूझे कल्कि संवत् और शक संवत्को एक ही मान लिया है । - परन्तु वास्तवमें कल्कि संवत् दूसरा है और शक संवत् दूसरा है । हरिवंशपुराणादि ग्रन्थोंके मतानुसार शक राजाके ३९४ वर्ष ७ महीने बाद कल्कि राजा हुआ है । अतएव कल्कि संवत् ६०० को शक संवत् ९९४ समझना चाहिए और इसी समयमें गोम्मटेशकी प्रतिष्ठा हुई, ऐसा मानना चाहिए । परन्तु इससे चामुण्डरायका समय लगभग १०० वर्ष पीछे हट जायगा, जो इतिहास से बहुत विरुद्ध जाता है। ऐसी दशामें या तो प्रो० शरच्चन्द्र घोषाल एम. ए. की कल्पनानुसार यह मान लेनाचाहिए कि बाहुबलिचरितके 'कल्क्यब्दे षट्शताख्ये' का अर्थ कल्किकी छठी शताब्दि है, ६०० संवत् नहीं, या कल्कि संवत् ६०० को कल्किका 'मृत्यु संवत्' मान लेना चाहिए जो कि उसके जन्मसे ७२ वर्ष पीछे सुरू होता है । हरिवंशपुराणमें उसकी आयु ७२ वर्षकी बतलाई गई है । मृत्युसंवत् माननेसे गोम्मटेशकी प्रतिष्ठाका समय शक संवत् ९२२ के लगभग आ जायगा जो कि संभव है । इस तरह ये दोनों ही सन्देह दूर हो जाते हैं और नेमिचन्द्र तथा चामुण्डरायका समय शककी दसवीं शताब्दिका प्रारंभ निश्चित हो जाता है । जैनसाहित्य में चामुण्डरायकी बहुत बड़ी प्रसिद्धि है । ये ब्रह्मक्षत्रिय वैश्य कुलमें उत्पन्न हुए थे । जैसा कि पूर्वमें कहा जा चुका है, ये गंगवंशीय महाराज राचमल्लके प्रधान मंत्री और सेनापति थे । श्रवणबेलगुलकी जगत्प्रसिद्ध बाहुबलि या गोम्मटस्वामीकी प्रतिमा इन्हींने प्रतिष्ठित कराई थी । नेमिनाथ भगवानकी इन्द्रनील मणिकी प्रतिमा - जो एक हाथ ऊँची कही जाती है - उन्हींकी बनवाई हुई है । गोम्मटसारमें इस प्रतिमाका उल्लेख है । ये बड़े ही उदार थे । इनकी उदारता से प्रसन्न होकर ' राचमल्ल ने इन्हें रायकी पदवी थी । इनका एक नाम 1 ,
SR No.007269
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherManikyachandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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