SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 711
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१२ ] :: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय श्रीदयाल बड़ा ही धर्मात्मा और जिनेश्वरभक्त था। वि० सं० १७६५ वैषाख कृष्णा ५ सोमवार को राजमान्य श्रीदयाल ने स्वभा० रंगरूपदेवी, पुत्र सदाशिव, पुत्री नाथी तथा लघुमातामही बाई लाड़ी और भगिनी गोकुलदेवी प्रमुख कुटुम्ब के सहित श्री गंभीरापार्श्वनाथ-चैत्यालय में देवकुलिका के ऊपर सुवर्णकलशध्वजारोहण एवं कीर्तिस्तंभस्थापना करवाई तथा समस्त संघ को भोज दिया और महामहोत्सव करके पित्तलमय श्री सुखसंपत्ति पार्श्वनाथ-प्रतिमा को देव, गुरु, संघ की अतिशय भक्ति एवं स्तुति करके स्थापित करवाई, जो तपागच्छीय पूज्य भट्टारक श्रीमद् विजयदयासूरि के आदेश से पन्यास केसरसागर के करकमलों से प्रतिष्ठित हुई थी। -- वंश वृक्ष महेता हीरजी [ हीरादेवी] महेता रामसिंह [ रायमती] महेता सुरजी [ सुरमदेवी ] जादवजी करसाजी ___माधवजी मदनजी [गंभीरदेवीं] मुरारजी श्रीदयाली रगरूपदेवकी गोलदेवी सदाशिव नाथी (पुत्री) प्राग्वाटज्ञातीय संघपति महता गोड़ीदास और जीवनदास वि० सं० १७६७ महता गौड़ीदास और जीवणदास दोनों सहोदर थे। दोनों ही बड़े धर्मात्मा श्रावक थे। इनके जीवन का आधार गुरुभक्ति एवं जिनेश्वरदेव की उपासना ही थे। इन दोनों भ्राताओं ने अपने जीवन में अनेक दीनों, हीनों एवं निरनपुरुषों को अनेक बार वस्त्रों का, अन्न का बड़ा २ दान किया था तथा पशु-पक्षी-जीवदयासंबंधी भी
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy