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________________ ५०८] :: प्राग्वाट-इतिहास: [वृतीव जोगा का पुत्र रहिया था। धर्मात्मा जसवीर ने सकल परिवार के श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ-जिनालय में मद्रप्रासाद करवाया और तपागच्छनायक श्रीपूज्य श्री ५ श्री सोमविमलसरि के शिष्य कलिकालसर्वज्ञ जगद्गुरु विरुदधारी विजयमान श्री पूज्य श्री ५ हेमसोमसूरीश्वरपट्टप्रभाकर प्राचार्य श्री विमलसोमसूरीश्वर के आदेश से महोपाध्याय श्री आनन्दप्रमोदगणिशिष्य पण्डितश्रेणीशिरोमणी पं० श्री सकलप्रमोदगणिशिष्य पं० तेजप्रमोदगणिद्वारा वि० सं० १६७१ वै० शु० ५ रविवार को शुभमुहूर्त में महामहोत्सवपूर्वक उसकी प्रतिष्ठा करवाई। प्राग्वाटज्ञातीय मंत्री मालजी विक्रम की अठारहवीं शताब्दी विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दीवबन्दर में प्राग्वाटज्ञातीय जीवणजी नामक प्रसिद्ध एवं गौरवशाली श्रीमंत के पुत्र मालजी नामक श्रावक रहते थे। ये वहां के नरेश्वर के प्रमुख एवं विश्वासपात्र मंत्रियों में थे। चतुर नीतिज्ञ तो थे ही, परन्तु साथ में बड़े धर्मात्मा भी थे; इससे इनका राजा और प्रजा दोनों में बड़ा मान और विश्वास था। मंत्री मालजी बड़े ही गुरुभक्त एवं जिनेश्वरदेव के उपासक थे। वि० सं० १७१६ में दीक्वन्दर में अंचलगच्छाधिपति श्रीमद् अमरसागरसूरि का पर्दापण हुआ था। मंत्री मालजी ने मारी समारोहपूर्वक पुष्कल द्रव्य व्यय करके राजसी ढंग से उनका नगर-प्रवेश करवाया था और विविध प्रकार से उनकी सेवाभक्ति करके गुरुभक्ति का परिचय दिया था। उस वर्ष का चातुर्मास श्रीमद् अमरसागरपरि ने मंत्री माखजी की श्रद्धा एवं भक्तिपूर्ण सत्याग्रह को मान देकर दीववन्दर में ही किया था। उस चातुर्मास में मंत्री मालजी ने गुरुमहाराज से चतुर्थव्रत की प्रतिज्ञा ली और साधर्मिक-वात्सल्य करके सधर्मी बन्धुओं की प्रशंसनीय भक्ति की और अनेक अन्य धर्मकार्यों में पुष्कल द्रव्य व्यय करके अपार यश की प्राप्ति की। गुरु महाराज के सदुपदेश से मंत्री मालजी ने श्री शांतिनाथ भगवान की एक रौप्यप्रतिमा और अन्य पाषाण की ग्यारह जिनेश्वर-प्रतिमा करवाई और श्री शत्रुजयमहातीर्थ पर एक लघुजिनालय विनिर्मित करवाकर वि० सं० १७१७ मार्गशिर क० १३ को उसमें स्थापित की। ऐतदर्थ चातुर्मास के अनन्तर गुरुमहाराज के सदुपदेश से मंत्री मालजी ने एक लक्ष द्राम व्यय करके श्री शजयमहातीर्थ की भारी संघसहित तीर्थयात्रा की थी। इस प्रकार मंत्री मालजी ने अनेक बार छोटे-बड़े महोत्सव एवं संघभक्तियां करके अपने अगणित द्रव्य का सदुपयोग किया और अमरकीर्ति उपार्जित की। वागड़देशान्तर्गत श्री आसपुरग्रामनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रावककुलशृगार संघवी श्री भीम और सिंह . विक्रम की अठारहवीं शताब्दी वागड़प्रदेश–वर्तमान ढुङ्गरपुर राज्य, बांसवाड़ाराज्य और मेवाड़राज्य का कुछ दक्षिण विभाग जो छप्पनप्रदेश कहलाता है, मिलकर वागड़प्रदेश कहलाता था। म०प०३६२.
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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