SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 703
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०४ ] :: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय देवासनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय मंत्री देवसिंह विक्रम की सोलहवीं शताब्दी देवासराज्य पर जब माण्डवगढ़पति मुसलमान शासकों का अधिकार था, माफर मलिक नामक शासक के श्री देवसिंह प्रमुख एवं विश्वस्त मंत्रियों में थे। यवन यद्यपि जैन एवं वैष्णव मंदिरों के प्रबल विरोधी थे, परन्तु माफर मलिक की मंत्री देवसिंह पर अतिशय कृपा थी; अतः विरोधियों की कोई युक्ति सफल नहीं हुई और मंत्री देवसिंह ने बहुत द्रव्य व्यय करके चौवीस जिनमंदिरों और पित्तलमय अनेक चतुर्विंशतिजिनपट्ट बनवाये और पुष्कल द्रव्य व्यय करके वाचक आगममंडन के कर-कमलों से उनकी प्रतिष्ठा करवाई । १ स्तम्भनपुरवासी परम गुरुभक्त ठक्कुर कीका विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी (१७) के प्रारंभ में दिल्ली सम्राट अकबर की राजसभा में श्रीमद् हीरविजयसूरि का प्रभाव बढ़ता जा रहा था और अन्यत्र भी उनके प्रसिद्ध, यशस्वी, प्रतापी भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही थी। खंभात में भी उक्त प्रभावशाली प्राचार्य के अनेक परम भक्त थे, जिनमें सोनी तेजपाल, सं० उदयकरण, ठक्कुर कीका, परीक्षक राजिया, वजिया आदि प्रमुख थे। ठक्कुर कीका प्राग्वाटज्ञातीय पुरुष था और वह अति धनाढ्य था । श्रीमद् हीरविजयथरि ने अपने साधुजीवन में खंभात में सात चातुर्मास किये थे तथा भिन्न २ संवतों में पच्चीस २५ प्रतिमाओं की प्रतिष्ठायें की थीं तथा उनका स्वर्गवास वि० सं० १६५२ में ऊना (ऊना-देलवाडा) में ही हुआ था। उनके पट्टधर श्रीमद् विजयसेनसूरि ने भी खंभात में २२ प्रतिमाओं की प्रतिष्ठायें की थीं । उक्त दोनों आचार्यों के प्रति खंभात के श्रीसंघ की अपार भक्ति थी। ठक्कुर कीका ने उक्त दोनों प्राचार्यों द्वारा किये गये चातुर्मासों एवं धर्मकृत्यों में पुष्कल द्रव्य व्यय किया था । वि० सं० १५६० फा० कृ. ५ को मुनि सोमविमल को खंभात में गणिपद प्रदान किया गया था, उस शुभोत्सव पर ठक्कुर कीका ने अति द्रव्य व्यय करके अच्छी संघभक्ति की थी। खंभात के पूर्व में लगभग अर्ध कोश के अन्तर पर आये हुये शकरपुर नगर में ठक्कुर कीका, श्रीमल्ल और वाघा ने जिनालय और पौषधशाला बनवाई । ठक्कुर कीका अपने समय के प्रतिष्ठित पुरुषों में अति संमानित व्यक्ति एवं धर्म-प्रेमी और गुरुभक्त श्रावक हुआ है। २ १ जै० सा० सं० इति० पृ० ४६६-५००. २ खे० प्रा० ० इति० पृ.६६,१६०.
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy