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________________ ४६८ ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: [ तृतीय राणा के सेवक उसपर अत्यन्त क्रुद्ध हुये और उन्होंने उसको बुरी तरह मारा और पीटा। सेवक रोता २ कालूशाह के पास में पहुँचा । कालूशाह यह अन्याय कैसे सहन कर सकते थे, तुरन्त खेत पर पहुँचे और राणा के सेवकों को एक २ करके बुरी तरह से पीटा और उनको बंदी बनाकर तथा घोडों को पकड़ कर अपने घर ले आये । कालूशाह के इस साहसी कार्य के समाचार तुरन्त नगर भर में फैल गये । परिजनों एवं संबंधियों के अत्यधिक कहने-सुनने पर इन्होंने राणा के सेवकों को तो मुक्त कर दिया, परन्तु घोडों को नहीं छोड़ा। राजसेवकों ने राणा के पास पहुँच कर अनेक उल्टी सीधी कही और कालूशाह के ऊपर उसको अत्यन्त क्रुद्ध बना दिया । राणा हमीर ने तुरंत अपने सैनिकों को भेज कर कालूशाह को बुलवाया । कालूशाह भी राणा हमीर से मिलने को उत्सुक बैठे ही थे । तुरन्त सैनिकों के साथ हो लिये और राजसभा में पहुँच कर राणा को अभिवादन करके निडरता के साथ खड़े हो गये । राणा हमीर ने लाल नेत्र करके कालूशाह से राजसेवकों को पीटने और राजघोड़ों को बंदी बना कर घर में बांध रखने का कारण पूछा और साथ में ही यह भी धमकी दी कि क्या ऐसे उद्दंड साहस का फल कठोर दंड से कोई साधारण सजा हो सकती है ! कालूशाह ने निडरता के साथ में राणा को उत्तर दिया कि जब राजा प्रजा से कृषि - कर चुकता है तो वह कृषि का संरक्षक हो जाता है। ऐसी स्थिति में कोई ही मूर्ख राजा होगा जो कृषि फिर नष्ट, भ्रष्ट कराने के विचारों को प्राथमिकता देता होगा ! अपनी प्यारी प्रजा का पालन, रक्षण करके ही कोई नरवीर राजा जैसे शोभास्पद पद को प्राप्त करता है और प्रजाप्रिय बनता है और प्रजा का सर्वनाश एवं नुकसान करके वह अपने स्थान को लज्जित ही नहीं करता, वरन प्रजा की दुराशीष लेकर इहलोक में अपयश का भागी बनता है और परलोक में भी तिरस्कृत ही होता है । राणा हमीर कालूशाह के निर प्रत्युत्तर को श्रवण करके दंग रह गया । कालूशाह के ऊपर अधिक कुपित होने के स्थान पर उसके ऊपर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और अपने सेवकों को बुरी तरह अपमानित करके आगे भविष्य में ऐसे अत्याचार करने से बचने की कठोर आज्ञा दी । राणा हमीर ने अपना कंठ मधुर करके कालूशाह को अपने निकट बुलाया और राजसभा के समक्ष उसको अपनी सैन्य में उच्चपद पर नियुक्त करके उसके गुणों की प्रशंसा की । कालूशाह अब कृषक से बदल कर सैनिक हो गया । धीरे २ कालूशाह ने ऐसी रणयोग्यता प्राप्त की कि राणा हमीर ने कालूशाह को अपना महाबलाधिकारी जिसको दंडनायक अथवा महासैनाधिपति कहते हैं, बना दिया जब दिल्ली के आसन पर अल्लाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जल्लालुद्दीन को मार कर बैठा, तो उसने समस्त भारत के ऊपर अपना राज्य जमाने का स्वम बांधा और बहुत सीमा तक वह अपने इस स्वन को सरलता से सच्चा अल्लाउद्दीन खिलजी का भी कर सका। फिर भी राजस्थान के कुछ राजा और राणा ऐसे थे, जिनको वह रणथंभौर पर आक्रमण और कठिनता से अधीन कर सका था । इनमें रणथंभौर के राणा हमीर भी थे । अल्लाउद्दीन कालूशाह की वीरता ने अपनी स्थिति सुदृढ़ करके तथा गुर्जर जैसे महासमृद्धिशाली प्रदेश पर अधिकार विश्वासपात्र सैनापति उलगखां और नुशरतखां को बहुत बड़ा और चुने हुए सैनिकों का सैन्य देकर वि० सं० १३५६ में रणथंभौर को जय करने के लिये भेजे । आक्रमण करने का तुरन्त कारण यह करके अपने महापराक्रमी,
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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