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________________ खण्ड ] :: न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवाङ्गमय की सेवा करने वाले प्रा० शा० सद्गृहस्थ - श्रा० साऊदेवी :: [ ३६५ श्रेष्ठ लींबा वि० सं० १४४१ सलखणपुरवासी प्राग्वाटज्ञातीय मं० भीम की स्त्री खोखटदेवी की कुक्षि से उत्पन्न मं० उ० लींबा ने तपागच्छाधिनायक श्रीमद् देवसुन्दरसूरि के सदुपदेश से पं० पद्मानन्द द्वारा वि० संवत् १४४१ पौ० कृ० १२ सोमवार को अपनी स्त्री लूणादेवी, भ्राता मं० सारंग आदि कुटुम्बीजनों के सहित श्री 'शब्दानुशासनावचूरि' नामक ग्रंथ की एक प्रति लिखवायी ।१ श्राविका साऊदेवी वि० सं० १४४४ विक्रमीय चौदहवीं शताब्दी में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० देदा नामक एक अति प्रसिद्ध व्यवहारी हेरंडकनगर में रहता था । उसके वसा ( वत्सराज ) नामक पुत्र हुआ । श्रे० वसा का पुत्र मोख था । श्रे० मोख की धर्मपत्नी जयतलदेवी की कुक्षि से मलयसिंह नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । श्रे० मलयसिंह अधिक प्रख्यात् एवं श्रीमन्त और धर्मप्रिय था । श्रे० मलयसिंह की धर्मपत्नी साऊ नामा अति धर्मपरायणा पतिभक्ता स्त्री थी । साऊ के पिता का नाम भी मलयसिंह ही था और माता का नाम मोहणदेवी था । श्रा० साऊ के पांच पुत्र और सात पुत्रियाँ हुईं । पुत्रों में सब से बड़ा जूठिल था और सारंग, जयंतसिंह, खेतसिंह, मेघा, क्रमशः उससे छोटे भ्राता थे । बड़ी देऊ थी और सारू, धरणू, उष्टमू, पांचू, रूड़ी, मानू क्रमशः उससे छोटी थीं । बहिनों में तपागणाधिप श्रीमद् देवसुन्दरसूरि के उपदेश को श्रवण करके श्रा० साऊदेवी ने अपने पति श्रे० मलयसिंह के श्रेयार्थ पुत्र-पुत्रियों के सहित शुभ कामनापूर्वक 'ज्योतिः करंडविवृत्ति', 'तीर्थकल्प', 'चैत्यवन्दनचूर्णी' आदि ग्रन्थों को ताड़पत्र पर वि० सं० १४४४ में नागशर्मा द्वारा अहिलपुरपत्तन में श्वसुर मोख और श्वसुरमह वसा की तत्त्वावधानता में बहु द्रव्य व्यय करके लिखवाये |२ वंश-वृक्ष देदा I वसा I मोख [जयतलदेवी] T १- प्र० सं० भा० २ पृ० ४ प्र० १६ ( शब्दानुशासनावचूरि) २ - जै० पु० प्र० सं० पृ० ४३ ता० प्र० ४१. D. C. M. P. (G. 0, S. Vo. LXXVI.) P. 88.
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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