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________________ ३८४] :: प्राग्वाट-इतिहास : [तृतीय श्रे० सोलाक की स्त्री का नाम लक्षणा था । लक्षणा के पांच पाण्डवों के समान महापराक्रमी, धर्मात्मा, महाव्रती एवं परिव्राजक पांच पुत्र थे । ज्येष्ठ पुत्र का नाम आंबू था। आंबू से छोटे भ्राता ने चारित्र ग्रहण किया श्रे० सोलाक और उसका और वह उदयचन्द्रसूरि के नाम से प्रख्यात हुआ। तीसरा और चौथा पुत्र चांदा और विशाल परिवार रत्ना थे। पांचवा वान्हाक हुआ। दो पुत्रियाँ थीं। कनिष्ठा पुत्री का नाम थाल्ही था । श्रे० आंबू के पासवीर, बाहड़, छाहड़ नामक तीन पुत्र और वान्ही, दिवतिणि और वस्तिणि नामा तीन पुत्रियाँ हुई। श्रे० चांदा के पूर्णदेव और पार्श्वचन्द्र नामक दो पुत्र और सीलू, नाउलि, देउलि, झणकुलि नामा चार मुख्या पुत्रियाँ हुई । नाउलि नामा पुत्री ने चारित्र ग्रहण किया और वह जिनसुन्दरी नामा साध्वी के नाम से विश्रुता हुई। श्रे० पूर्णदेव की स्त्री पुण्यश्री थी। पुण्यश्री की कुक्षि से धनकुमार नामक पुत्र हुआ और एक पुत्री हुई, जिसने चारित्र ग्रहण किया और वह चंदनवाला नामा गणिनी के नाम से विख्याता हुई। श्रे० रत्ना के पाहल नामा पत्र हुआ । पाहुल के कुमारपाल और महिपाल नामक पुत्र हये। श्रे० सोलाक का कनिष्ठ पत्र ।। बाल्हाक के एक पुत्र हुआ और उसने चारित्र ग्रहण किया और वह साधुओं में अग्रणी हुआ। उसका नाम ललितकीर्ति था। श्रे० आंबू के द्वि० पुत्र बाहड़ की धर्मपत्नी वसुन्धरी नामा थी। इनके गुणचन्द्र नामक पुत्र और गांगी नामा विश्रुता पुत्री हुई । श्रे० छाहड़ की धर्मपत्नी पुण्यमती थी। जो श्रे० कुलचन्द्र की धर्मपत्नी रुक्मिणी की कुक्षि से उत्पन्न हुई थी। पुण्यमती स्त्री शिरोमणि सती थी। इसके धांधाक नामक पुत्र और चांपलदेवी और पाल्हु नामा दो पुत्रियाँ हुई। धांधक की स्त्री माल्हिणी के झांझण नामक पुत्र हुआ। श्रे० आंबू का ज्येष्ठ पुत्र जैसा ऊपर लिखा जा चुका है पासवीर था। पासवीर की पत्नी का नाम सुखमती था। सुखमती गुणनिर्मला और मधुर स्वभाववाली स्त्री थी। उसके गुणों पर जनगण मुग्ध रहते थे। सुखमती के चार पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई। ज्येष्ठ पुत्र सेवा नामा अति विख्यात हुआ । द्वि० पुत्र का नाम हरिचन्द्र था। तीसरे पुत्र ने चारित्र ग्रहण किया और वह उन्नति करके गच्छनायक पद को प्राप्त हो कर श्री जयदेवसरि नाम से जगत में विख्यात हुआ । चौथे पुत्र का नाम भोला था । पुत्रियों के नाम लडही और खींवणी थे। श्रे० सेवा की धर्मपत्नी पाल्हदेवी नामा थी। भोला की जाल्हणदेवी नामा स्त्री थी। इस प्रकार पासवीर एक विशाल कुटुम्ब का स्वामी था । श्रे० सेवा ने वि० सं० १३२६ श्रावण शु० ८ को वरदेव के पुत्र लेखक नरदेव द्वारा श्री परिशिष्टपर्वपुस्तिका' मुनिजनों के वाचनार्थ बहुत द्रव्य व्यय करके लिखवाई । वंशवृक्ष शुभंकर सेवा यशोधन
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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