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________________ बरड :: श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं महाकविगण-कवीश्वर ऋषभदास:: धनपाल विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में हुआ है। कवि धनपाल ने 'बाहुबलि-चरित्र' की रचना की है। यह ग्रन्थ अपभ्रंश भाषा में अट्ठारह संधियों में पूर्ण हुआ है और उसकी पत्र-संख्या २७० है । इस प्रन्थ की हस्तलिखित प्रति आमेर (जयपुर राज्य) के भट्टारक श्री महेन्द्रकीर्ति-भण्डार में विद्यमान है। इससे अधिक धनपाल कवि के विषय में कुछ नहीं मिला है। विद्वान् चण्डपाल प्राग्वाटज्ञातीय यह विद्वान् आचार्य यशोराज का पुत्र था। विद्वान् पिता का पुत्र भी विद्वान् ही होना चाहिए यह कहावत सचमुच चंडपाल ने सिद्ध की थी। यह कवि लुणिग नामक गुरु का शिष्य था। लूणिग भी अति विद्वान् एवं शास्त्रज्ञाता था। महाकवि चंडपाल ने ई० सन् ६१५ में हुये त्रिविक्रमभट्ट नामक विद्वान् द्वारा लिखित 'दमयन्ती-कथा' (चम्पू) पर 'दमयन्त्युदारविवृति' लिखी। गर्भश्रीमन्त कवीश्वर ऋषभदास विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी राजनीति, समाज, धर्म, कला, व्यापार, वाणिज्य, साहित्य की दृष्टियों से यवनशासन-काल में अजोड़ एवं स्मरणीय है । सम्राट अकबर जैसे महान् नीतिज्ञ, लोकप्रिय, प्रजापालक और जहाँगीर जैसे महदुदार, न्यायशील एवं शाहजहाँ जैसे प्रेमी, वैभवशाली शासक इस शताब्दी में कवि का समय हो गये हैं। ये सर्व धर्मों का, सर्व ज्ञातियों का बराबर २ सम्मान करते थे। इनके निकट हिन्दू और मुसलमानों का, हिन्दुधर्म और इस्लामधर्म का भेद नहीं था। ऐसे शासकों के शासन काल में प्रत्येक धर्म, समाज, साहित्य, कला की उन्नति होना स्वाभाविक है । अकबर के दरबार में हीरविजयसरि का, जहाँगीर के दरबार में हीरविजयसूरि के पट्टधर 'सूर-सवाई' विजयसेनमरि और उनके पट्टधर विजयदेवसरि का तथा अन्य साहि सकल साम्राज्य धुरा विभ्राणस्य समये श्री दिल्ल्या श्री कुदकुंदाचार्यान्वये सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारक श्री रलकीर्तिपट्टे दयादि तरुणतरणित्वमुर्वी कुर्वाणः भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रदेव तत् शिष्याणां ब्रह्म नाथूराम इत्याराधना पंजिकाया ग्रंथं पढनार्थ लिखापित' (शिवनारायणजी यशलहाके सौजन्य से) अनेकान्त वर्ष ७, अंक ७,८, 'श्रीप्राग्वाटकुलामताधिशशभृत् श्रीमान् यशोराज, इत्याचार्योस्य पिता प्रबन्धसुकविः श्रीचंडपालामजः। . . श्रीसारस्वति सिद्धये गुरूपि श्री लूलिगः शुद्धधी, सोऽ कार्षीत् दमयन्त्युदारविवृति श्रीचण्डपाला सुधीः। जै० सा०सं० इति पृ०५६०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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