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________________ .: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय तपागच्छीय पं० हंसरत्न और कविवर पं० उदयरत्न वि० सं० १७४६ से वि० सं० १७६६ खेड़ा नामक ग्राम में विक्रमीय अट्ठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० वर्धमानशाह रहता था। पानबाई नामा उसकी पतिपरायणा पली थी। पं० हंसरत्न और पं० उदयरत्न दोनों इनके सुपुत्र थे। हंसरत्न बड़े _ और उदयरत्न छोटे सहोदर थे। बड़े होने पर दोनों भ्राताओं ने रत्नशाखा में दीक्षा वंश-परिचय और दीक्षा चय भार दादा ग्रहण की। तपागच्छाधिराज विजयदानसूरि के पट्टधर आचार्य सम्राट अकबर-प्रतिबोधक श्री श्रीमद् विजयहीरसूरि के म्याद विजयराजसूरि से रत्नशाखा उद्भूत हुई । तपागच्छ-परम्परा श्रीमद् विजयराजसूरि रखविजयसरि श्री हीररत्नसूर श्री जयरत्नमरि 40 श्री लघिरत श्री भावरत्नसरि उपा० सिद्धरत्न श्री दोनरनसरि मेघरलगणि पं० राजरत श्री अमररत पं० लक्ष्मीरन 4.शिवरत 40 ज्ञानरल शिष्य उ० उदयरल हंसरत १-त० अ० वंश-वृक्ष पृ०७ २-पट्टावली समुच्चय पृ०१०६ (टिप्पणी) . . ३- श्री राजविजयसरीश्वर सद्गुरु, सकलसरीनि जीपेजी, तास पाटि श्री रलविजयसरि, तेजनो अंबारजी। श्री हीरत्लसरीश्वर जगगुरु, सोहिं तस पटोधारजी, तस पाटिं तरणी तणी परि, प्रतपि श्री जयरलसूरिदोजी । जयवंता श्री भावरत्नसूरी (प्राग्वाटज्ञातोय) भवियण भावे वन्दोजी, श्रीहीररत्नसूरीश्वर केरा, गिरुमा प्रमथ गणधारजी। पंडित लब्धिरल महामुनिवर भवजल तारणहारजी, तस अन्वय वाचकपदधारी, श्री सिद्धरल उवजायाजी।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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