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________________ : प्राग्वोट-इतिहास: गोत्रों का महत्त्व उस काल में अधिक था यह जैनसूत्रों के अन्य उल्लेखों से भी अत्यन्त स्पष्ट है । 'भावश्यक-नियुक्ति की ३८१ गाथा में लिखा है कि चौबीस तीर्थंकरों में से मुनीसुव्रत और अरिष्टनेमि गौतमगोत्र के थे और अन्य सब काश्यपगोत्र के थे । बारह चक्रवर्ती सभी काश्यपगोत्र के थे । वासुदेव और बलदेवों में आठ गौतमगोत्र के थे, केवल लक्ष्मण और राम काश्यपगोत्र के थे। वीरनिर्वाण के ६८० वर्ष में जैनागम लिपिबद्ध हुये । उस समय तक के युगप्रथान प्राचार्यों एवं स्थविरों के नामों के साथ भी गोत्रों का उल्लेख किया जाना तत्कालीन गोत्रों के महत्व को और भी स्पष्ट करता है। छट्ठी शताब्दी तक तो इन प्राचीन गोत्रों का ही व्यवहार होता रहा यह कल्पसूत्र' की स्थविरावली से भलीभांति सिद्ध हो जाता है । स्थविरावली में पाये जाने वाले गोत्रों के नाम और उन गोत्रों में होने वाले आचार्यों का विवरण नीचे दिया जा रहा है। गोत्रों के नाम आचार्यों के नाम गोत्रों के नाम आचार्यों के नाम १ गौतम इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति तुंगियायन यशोभद्र. अकंप, स्थूलीभद्र, आर्यदिन्न, १० मादर संभूतिविजय, आर्यशांति, विष्ण, वज्र, फाल्गुमित्र, नाग, कालाक, देशीगणि सम्पिल,भद्र,वृद्ध, संगपालि आदि ११ प्राचीन भद्रबाहु. २ भारद्वाज व्यक्त और भद्रयश १२ ऐलापत्य आर्य महागिरि. ३ अग्निवैश्यायन सौधर्म १३ व्याघ्रापत्य सुस्थित, सुप्रतिबद्ध. ४ वाशिष्ठ मण्डित, आर्य सुहस्ति, धनगिरि, १४ कुत्स शिवभूति. जेहिल, गोदास. १५ कौशिक आर्य इन्द्रदिन्न, सिंहगिरि और ५ काश्यप मौर्यपुत्र, जम्बू, सोमदत्त, रोहण, रोहगुप्त ऋषिगुप्त,विद्याधर गोपाल, आर्य- १६ कोडाल कामर्थि भद्र, आर्यनक्षत्र, रक्ष, हस्ति, १७ उत्कौशिक वज्रसेन सिंह, धर्म, देवधि, नन्दिनीपिता, १८ सुव्रत या श्रावक आर्यधर्म ६ हरितायन अचलभ्राता, कौडिन्य, मेतार्य १६ हरित श्रीगुप्त और प्रभाष. २० स्वाति सायिं सामज्जम् (नंदिसूत्र) ७ कात्यायन प्रभव. २१ सांडिल्य आर्य जीतधर (नंदि-स्थविरावली ८ वत्स सय्यंभव, आर्यरथ. गा० २६). यहां यह विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि छट्ठी शताब्दी के प्रारम्भ तक वर्तमान जैन ज्ञातियों और उनके गोत्रों में से किसी एक का भी नाम नहीं है। यदि उस समय तक वर्तमान जैनज्ञातियों की स्थापना स्वतंत्र वर्तमान जैन श्वे. ज्ञातियाँ रूप से हो चुकी होती तो उनमें से किसी भी ज्ञाति के गोत्रवाला तो जैन मुनिव्रत अवश्य और उनकी स्थापना स्वीकार करता और उस प्रसंग से उपर्युक्त स्थविरावली में उसके नाम के साथ वर्तमान जैन ज्ञातियों में से किसी का उल्लेख तो अवश्य रहता। इसलिये वर्तमान जैन ज्ञातियों की स्थापना छट्ठी शताब्दी
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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