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________________ ३०८ ] प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय श्री लूणसिंहवसति की एक कुलिका में वि० सं० १३३५ ज्ये० शु० १४ शुक्र को श्री मुनिसुव्रतस्वामीबिंब को भी आश्वावबोधशमलिकाविहारतीर्थोद्धारसहित इन्हीं आचार्य के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया था, जिसका उल्लेख पूर्व हो चुका है। श्रेष्ठि कुलचन्द्र नंदिग्राम के रहने वाले प्रा० ज्ञा० महं० वरदेव के संभवतः पौत्र दुल्हेवी के पुत्र श्रारासणाकर नगर में रहने वाले श्रे० कुलचन्द्र ने स्वभ्राता रावण और उसके पुत्र पासल और पोहड़ी, भ्रातृजाया पुनादेवी के पुत्र वीरा और पाहड़, पाहड़ के पुत्र जसदेव, सुल्हण, पासु और पासु के पुत्र पारस, पासदेव, शोभनदेव, जगदेव आदि तथा वीरा के पुत्र काहड़ और आम्रदेव आदि अपने गोत्र और कुटुम्ब के जनों के संतोष के निमित्त तथा ग्राम के कल्याण के लिये श्री नेमिनाथ-चैत्यालय में श्रीसुपार्श्वनाथ भ० का बिंब भरवा कर प्रतिष्ठित करवाया ।१ श्री जीरापल्लीतीर्थ-पार्श्वनाथ-जिनालय में प्राग्वाटान्वयमण्डन श्रे० खेतसिंह और उसका यशस्वी परिवार वि० सं० १४८१ राजस्थानान्तर्गत सिरोही-राज्य में जीरापल्लीतीर्थ एक अति प्रसिद्ध जैनतीर्थ है । इस तीर्थ की विक्रम की पन्द्रहवीं, सौलहवीं शताब्दी में बड़ी ही जाहोजलाली रही है। तीर्थ का विश्रुत नाम श्री जीरावला-पार्श्वनाथबावनजिनालय है। __विशलनगरवासी प्राग्वाटवंश को सुशोभित करने वाले श्रे० खेतसिंह के पुत्र श्रे० देहलसिंह के पुत्र श्रे० खोखा की भार्या पिंगलदेवी और उसके पत्र सं० सादा.सं० हादा. सं० मादा, सं० लाखा, सं० सिधा ने इस तीर्थे के बावनजिनालय में तीन देवकुलिकायें क्रमशः २, ३, ४ बनवाई और सं० १४८१ वै० शु० ३ के दिन बृहत्तपापक्षीय भट्टारक श्री रत्नाकरसूरि के अनुक्रम से हुये श्री अभयसिंहसूरि के पट्टारूढ़ श्री जयतिलकसूरीश्वर के पाट को अलंकृत करने वाले भट्टारक श्री रत्नसिंहसरि के सदुपदेश से महामहोत्सव पूर्वक उनकी प्रतिष्ठिा करवाई ।२ १-१० प्र० ० ले० सं० ले०४१ २-जै० प्र० ले० सं०ले०२७४, २७५, २७६. श्री पूर्णचन्द्रजी नाहर एम० ए० बी० एस० द्वारा संग्रहीत 'जैन लेख-संग्रह' प्रथम भाग के लेखांक ६७७ से उक्त तीनों लेखांक बहुत अधिक मिलते हैं। श्री नाहरजी ने 'पिंगलदेवी' के स्थान पर 'पिनलदेवी, 'सं० मादा' के स्थान पर 'सं० मूदा' और 'देहल, 'हादा नहीं लिख कर स्पष्ट 'देवल' और 'दादा' लिखा है और सं० 'लाखा' का नाम भी नहीं है। अ० प्र० ० ले० सं० ले०१२६,१२७,१२८ में उक्त तीनों लेख प्रकाशित हैं। परन्तु उनमें 'देहल' के स्थान पर 'देदल,' 'पांगलदेवी के स्थान पर 'पीतलदेवी, सं० 'हादा' के स्थान पर 'हीदा,' 'मादा' के स्थान पर 'सुद्री' और 'सिधा के स्थान पर 'सिहा' लिखा है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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