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________________ २६६ ) :: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय सदुपयोग किया । इन्होंने श्री शत्रुजयमहागिरि के ऊपर श्री चतुर्मुखविहार-श्रीआदिनाथ नामक जिनप्रासाद सपाकार बनवाना प्रारंभ किया था, परन्तु काल की कुगति से उसकी प्रतिष्ठा इनके हाथों नहीं हो सकी थी। ___ सं० सोमजी के यशस्वी, महागुणी एवं राजसभा में श्रृंगारसमान पुत्र रूपजी था। उस समय भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली के सिंहासन पर प्रसिद्ध प्रतापी मुगलसम्राट अकबर का पुत्र नूरदी जहांगीर विराजमान था । सोमजी के पुत्र रूपजी और उसके शासनकाल में सं० रूपजी ने एक विराट् संघ निकाल कर शत्रुजयमहातीर्थ की शत्रुजयतीर्थ की संघयात्रा यात्रा की और संघपति का तिलक धारण किया तथा अपने पिता सोमजी और काका शिवजी द्वारा जिस उपरोक्त चतुर्मुख-आदिनाथ जिनालय का निर्माण प्रारम्भ करवाया गया था को पूर्ण करवाकर श्रीमद् उद्योतनसूरि की पाटपरंपरा पर आरूढ़ होते आते हुये क्रमशः आचार्य जिनचन्द्रसूरि, जिनको मुगलसम्राट अकबर ने युगप्रधान का पद अर्पित किया था के शिष्यप्रवर श्रीमद् जिनसिंहसरि के पट्टालंकार आचार्य श्रीमद् जिनराजसूरि के करकमलों से वि० सं० १६७५ वैषाख शु० १३ शुक्रवार को पुष्कल द्रव्य व्यय करके महामहोत्सव पूर्वक प्रतिष्ठित करवाया तथा उसमें चार अति भव्य आदिनाथबिंब चारों दिशाओं में अभिमुख विराजमान करवाये और एक आदिनाथ-चरण जोड़ी भी प्रतिष्ठित करवाई। सं० रूपजी, सं० सूरिजी, सं० सुन्दरदास और सखरादि ने इस प्रतिष्ठोत्सव के शुभावसर पर ५०१ जिनबिंबों की प्रतिष्ठा करवाई थी। शत्रुजयतीर्थ पर आज भी उपरोक्त चतुर्मुखादिनाथ-मंदिर 'श्री शिवा और सोमजी की ट्रॅक' के नाम से ही प्रसिद्ध है। इस टैक के बनाने में 'मिराते-अहमदी' के लिखने के अनुसार ५८०००००) अटठावन लक्ष रुपयों का व्यय हा था तथा ऐसा भी कहा जाता है कि केवल ८४०००) चौरासी हजार रुपयों की तो रस्सा और रस्सियाँ ही खर्च हो गई थीं। उक्त खरतरवसहिका श्री चतुर्मुखादिनाथ-जिनालय में आज भी निम्न प्रतिमायें सं० रूपजी और उसके कुटुम्बियों द्वारा स्थापित विद्यमान हैं :१-ट्रॅक के वायव्यकोण में विनिर्मित देवकुलिका में सं० रूपजी द्वारा स्थापित श्री आदिनाथ-चरण-जोड़ी एक । २-ट्रॅक के मूलमन्दिर में चारों दिशाओं में मूलनायक के रूप में सं० रूपजी द्वारा स्थापित श्री आदिनाथ भव्य प्रतिमायें चार । ३-ट्रॅक के ईशानकोण में सं० नाथा के पुत्र सं० सूरजी द्वारा स्वस्त्री सुखमादेवी और दत्तक पुत्र इन्द्रजी के सहित स्थापित करवाई हुई श्री शान्तिनाथ-प्रतिमा एक । ४-सं० रूपजी के वृद्धभ्राता सं० रत्नजी के पुत्र सुन्दरदास और सखरा द्वारा स्वपिता के श्रेयार्थ आग्नेयकोण में स्थापित श्री शान्तिनाथ-प्रतिमा एक। उपरोक्त बिंबों के प्रतिष्ठाकर्ता प्राचार्य श्री जिनराजसूरि ही हैं। शोध करने पर सम्भव है इस अवसर पर इनके द्वारा संस्थापित और भी अधिक बिंबों का पता लग सकता है। २. क्षमाकल्याणक की खरतरगच्छ की पट्टावली में श्रे. शिवा और सोमजी दोनों भ्राताओं के विषय में लिखा है कि वे अति दरिद्रावस्था में थे और चीभड़ा (शुष्क शाक-काचरी) का व्यापार करते थे। खरतरगच्छीय श्रीमद् जिनचंद्रसरि के सदुपदेश से इन्होंने चीमड़ा का व्यापार करना छोड़ा और श्रावक के योग्य अन्य धंधा करने लगे। देवयोग से थोड़े ही वों में पुष्कल द्रव्य अर्जित कर लिया और अत्यंत धनवान हो गये। 'अहमदाबादनगरे चिर्भटीब्यापारेणार्जीविका कुर्वाणो मिथ्यात्विकुलोत्पनौ प्राग्वाटज्ञातीयौ सिवा सोमजी नामानौ द्वौ भ्रातरौं (प्रतिबोध्य सकुटुम्बौ श्रावको) वृतवन्तः ॥'
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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