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________________ २५] :: प्राग्वाट - इतिहास :: [ तृतीय दिवार से लगा कर ऊपर की मंजिल में जाने के लिये पदनाल बनी है । सभामण्डपों के आगे भ्रमती या गई है, जिसमें भक्तगण मन्दिर की परिक्रमा करते हैं । इस भ्रमती से लगकर चारों ओर बनी हुई बावन देवकुलिकाओं की रचना आ जाती है । देवकुलिकाओं के आगे स्तंभवती वरशाला है । देवकुलिकाओं का पृष्ठ भाग सुदृढ़ परिकोष्ठ में विनिर्मित हैं । यह परिकोष्ठ चतुष्क की चारों भुजाओं पर अपनी योग्य ऊंचाई, कुलिकाओं के शिखरों के कारण अति ही विशाल एवं मनोहर प्रतीत होता है । मन्दिर का सिंहद्वार जैसा ऊपर भी लिखा जा चुका है, पश्चिमाभिमुख है और द्विमंजिला है । मन्दिर में कलाकाम नहीं है, फिर भी बावन देवकुलिकाओं से, उनके शिखरों से, नैऋत्य और वायव्य कोणों में बनी हुई विशाल देवकुलिकाओं के ऊंचे शिखर और गुम्बजों से, चारों दिशाओं बने हुये चारों सभामण्डपों के चारों विशाल गुम्बजों की रचना से वह ऊंचाई पर से देखने पर अति ही विशाल, भव्य और मनोहर प्रतीत होता है । मन्दिर की प्रतिष्ठा यद्यपि विक्रम संवत् १६३४ में ही हो चुकी थी। फिर भी जैसा इस मन्दिरगत प्रतिमाओं के प्रतिष्ठासंवतों से प्रतीत होता है, चौमुखी मंजिलों, देवकुलिकाओं में मूर्त्तियों की प्रतिष्ठायें वि० सं० १७२१ तक होती रहीं और तदनुसार मन्दिर का निर्माणकार्य भी प्रतिष्ठोत्सव पश्चात् भी कई वर्षों तक चालू रहा । सं० सीपा के पुत्रों, पौत्रों, प्रपौत्रों द्वारा श्री चतुर्मुखी-आदिनाथचैत्यालय में विभिन्न २ संवतों में प्रतिष्ठित करवाई गयीं प्राप्त मूर्त्तियों का परिचय निम्नवत् है: प्रतिष्ठा-संवत्-तिथि प्रतिष्ठाकर्त्ता ११६४४ फा० कृ० १३ बुध. हीरविजयसूरि. २ ३ १० ११ १२ 17 99 " " ४ १७२१ ज्ये०सु० ३ रवि. विजयराजसूरि. ५ ६ ७ ८ 21 " " "" "" 17 " 11 "" "" १७२१ ज्ये० शु० ३ रवि. विजयराजसूरि. "" 17 प्रतिष्ठापक 17 मूलगंभारा में यशपाल. 19 गूढ़मण्डप की चौपट्टी पर धनपाल (धनराज ). कर्मराज. "" द्वि० चौमुखी मंजिल के गम्भारा में " गुणराज. " कर्मराज. गुणराज . कर्मराज. वीरभाण. कर्मराज. विशेष मू० ना० आदिनाथ पश्चिमाभिमुख. उत्तराभिमुख. पूर्वाभिमुख. प्रतिमा पार्श्वनाथ. " जिनबिंब. वासुपूज्य. पार्श्वनाथ. " सुबाहुस्वामी. संभवनाथ मंत्री वस्तुपाल के श्रेयार्थ. पश्चिमाभिमुख. मुनिसुव्रत. देवराज के पुण्यार्थ उत्तराभिमुख. जिनबिंब. १८- श्री सांखेश्वर - पार्श्वनाथ - जिनालय के उत्तराभिमुख श्रालयस्थ श्री आदिनाथबिंब का लेखांश 'सं० कृष्णा तत्पुत्र धनराज तस्य भार्याी सारू' पूर्वाभिमुख. आदिनाथ. सचवीर के पुण्यार्थ दक्षिणाभिमुख
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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