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________________ खण्ड ]::न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण जीर्णोद्धार कराने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ-श्रे० खीमसिंह, सहसा :: [ २८३ पूरी जैसा लिखा जा चुका है श्रे० खीमसिंह के पुत्र देता की ज्येष्ठा पुत्री थी। वह महागुणवती थी । धीरे २ वह संसार की सारता को देखकर वैराग्यरंग में रंगने लगी और निदान उसने भागवती दीक्षा ग्रहण की। श्रे० खीमसिंह और सहसा प्रपिता खीमसिंह ने अपनी प्यारी पौत्री पूरी का दीक्षोत्सव अति द्रव्य व्यय करके अति सुन्दर द्वारा प्रवर्त्तिनी - पदोत्सव चिरस्मरणीय किया था। साध्वी पूरी बड़ी ही बुद्धिमती थी । धीरे २ शास्त्रों का अभ्यास करके वह प्रवर्त्तिनीपद के योग्य हो गई । आचार्य जयचन्द्रसूरि ने उसको प्रवर्त्तिनीपद देना उचित समझ कर श्रे० खीमसिंह और श्रे० सहसा द्वारा आयोजित प्रवर्त्तिनीपदोत्सव का समारम्भ करके शुभमुहूर्त में उसको प्रवर्त्तिनीपद प्रदान किया। इस अवसर पर दोनों भ्राताओं ने रेशमी वस्त्रों एवं कम्बलों की भेंट दी और स्वामी वात्सल्यादि से संघ की भारी संघभक्ति की । चांपानेर-पावागढ़ के ऊंचे पर्वत पर चैत्यालय बनवाया और उसमें विशाल जिनप्रतिमाओं को महामहोत्सवपूर्वक वि० सं० १५२७ पौष कृष्णा ५ को शुभ मुहूर्त में प्रतिष्ठित करवाई । वि० सं० १५३३ में प्रसिद्ध क्षेत्रों दोनों भ्राताओं के अन्य में अनेक सत्रागार खुलवाये । दोनों भ्राताओं ने श्री शत्रुंजयमहातीर्थ और गिरनारतीर्थों पुण्यकार्य की बड़ी २ यात्रायें कीं और बड़े २ उत्सव किये । तपागच्छनायक श्रीमद् लक्ष्मीसागरसूरि के प्रमुख शिष्यों में अग्रणी सोमजयगुरु के सदुपदेश से दोनों भ्राताओं ने वि० सं० १५३४ में 'चित्कोश - ज्ञानभण्डार' के लिये समस्त जैनागमों को अति सुन्दर अक्षरों में लिखवाया । इस प्रकार उक्त दोनों भ्राता श्रेष्ठ परिवार वाले, धर्म के धुर, सदाचारी, जिनेश्वरभक्त, विचारशील, उदार और साधु-साध्वियों के परम अनुरागी थे। दोनों भ्राताओं ने अनेक धर्मकृत्य किये, अनेक बार स्वामीवात्सल्यादि करके तथा लाडूओं में रुपयादि रख कर लाभिनियाँ, पहिरामणियाँ देकर प्रशंसनीय संघभक्तियाँ कीं । तीर्थोद्धार, परोपकार, गुरुमहाराज का सत्कार, नगर- प्रवेशोत्सव, प्रतिमा-प्रतिष्ठायें, पदोत्सव आदि अनेक धर्मकृत्यों में पुष्कल द्रव्य व्यय किया । अनेक बार उत्तम वस्त्रों की भेंटें दीं। इस प्रकार दोनों भ्राताओं ने जैन-धर्म की निरंतर सेवा करके अपना धन और जीवन सफल बनाया । सादा [लितादेवी ] देवा ते० पा० वि० ५० १६ से २१ वंश-वृक्ष छाड़ाक काबा [ कदू ] खीमसिंह [धनाई ] | राजड़ [ गोमतीदेवी ] सहसा [वारुमती ] 1
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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