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________________ प्राग्वाट-इतिहास .. तृतीय खंड न्यायोपार्जित स्वद्रव्य को मंदिर और तीर्थों के निर्माण और जीर्णोद्धार के विषयों में व्यय करके धर्म की सेवा करनेवाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थ धर्मवीर नरश्रेष्ठ श्री ज्ञान-भण्डार-संस्थापक श्रेष्ठि पेथड़ और उसके यशस्वी वंशज, डूंगर पर्वतादि विक्रम संवत् १३५३ से विक्रम संवत् १५७१ पर्यन्त विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गूर्जरप्रदेश की राजधानी अणहिलपुरपत्तन के समीप के संडेरक नामक ग्राम में प्राग्वाटज्ञातीय प्रसिद्ध श्रेष्ठि सुमति नामक व्यवहारी रहता था । उसके आभू नामक एक पेथड के पूर्वज और अनुज ____ प्रसिद्ध पुत्र था । आभू दृढ़ जैन-धर्मी, दयालु एवं महोपकारी पुरुष था । आभू का पुत्र - आसड़ था। आसड़ भी अपने पिता के सदृश बहुत गुणवान् एवं धर्मात्मा था। वह महान् आसड़ के नाम से ग्रंथों में प्रसिद्ध है। आसड़ के मोखू और वर्द्धमान नामक दो पुत्र थे। 'स्वस्तिश्री प्रदवर्धमान भगव प्रसादत् विम्राजिते,। श्री संडेरपुरे सुरालय ममे प्राग्वाट वंशोत्तमः । आभूर्भुरियशा अभूत् सुमतिभूर्भूमि प्रभु प्रार्थित । स्तज्जातोऽन्वय पद्मभासुररविः श्रेष्ठी महानासडः ॥१॥ सन्मुख्यो मोषनामा नयविनयनिधिः सूनुरासीत्तदीय स्तदाता वर्धमानः समजनि जनतासु स्वसौजन्यमान्यः ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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