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________________ खण्ड] ::सिंशवलोकम: [२४ किंधार किया हो । वह तो अपरिग्रह में विश्वास रखने वाला होता है। राज्यचालन में प्रकल्पः उसने पूरा २. योग दिया है, यह उसकी देशभक्ति, प्रजासेवा-भावनाओं का स्पष्ट प्रमाण है। तभी तो यह जनश्रुतिः चलती आई है कि जिस राज्य का महाजन संचालक नहीं, वह राज्य नष्ट हुये बिना रहता नहीं। महाजनवर्ग को जो समय २ पर नगरप्रेष्ठिपद, शाहपद मिलते रहे हैं, इन पदों के पाने वाले अधिक संख्या में जैन श्रीमन्त ही हुये हैं । श्रेष्ठि,श्रीमन्त, शाहूकार जैसे गौरवशालीपद जो उदारता,वैभवत्व, सस्य और सरलतादि गुणों के परिचायक उपाधिपद हैं जैनश्नावकों ने ही अपना अमूल्य धन, तन जनता-जनार्दन के अर्थ लगा कर ही प्राप्त किये हैं। तभी तो कहा जाता है: 'वाणिया बिना रावणनो राज गयो । 'ओसवाल भूपाल है, पौरवाल वर मित्र । श्रीमाली निर्मलमती, जिनके चरित विचित्र' ॥ ये दोहे कब से चले आते हैं समय निश्चित नहीं कहा जा सकता है। प्राग्वाटज्ञातीय बन्धुओं के विषय में कुछ पद विमलचरित्र में हैं, जिनसे उनके विशिष्ट गुणों का परिचय मिलता है: 'सप्तदुर्ग प्रदानेन, गुण सप्तक रोपणात् । पुट सप्तकवंतोऽपि प्राग्वाट इति विश्रुता ॥६॥ श्राद्यं १प्रतिज्ञानिाहि, द्वितीयं २प्रकृतिस्थिरा । तृतीयं ३ौदवचन, चतुः ४प्रज्ञाप्रकर्षवान् ॥६६॥ पंचमं ५अपंचज्ञः, शष्ठं ६प्रबलमानसम् । सप्तमं अभुताकांक्षी, प्राग्वाटे पुटसप्तकम् ॥६७॥ अर्थात् पौरवालवर्ग का व्यक्ति प्रतिज्ञापालक, शांतप्रकृति, वचनों का पक्का, बुद्धिमान्, दूरदृष्टा, दृदृहृदयी और प्रगतिशील होता है। इतिहास इस बात को सिद्ध करता है कि प्राग्वाटवर्ग जैसा धर्म एवं कर्तव्य-क्षेत्र में प्रमुख रहा है, रणवीरता में भी उसका वैसा ही अपना स्थान विशिष्ट रहा है। 'रणि राउली शूरा सदा, देवी अंबावी प्रमाण । पोरवाड़ प्रगटमल्ल, मरणिन मूके माण' ॥ प्राग्वाटकुलों की कुलदेवी अंबिका है, जो रणदेवीमाता भी मानी जाती है। प्राग्वाटवर्ग का व्यक्ति वीर होता है, उसकी अपनी कुलदेवी में पूरी प्रास्ता, निष्ठा होती है। वह समरक्षेत्र में वीरता प्रगट करता है और मर कर भी अपने मान को नहीं खोता । विक्रम संवत की आठवीं शताब्दी से लगाकर तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक तथा कुछ चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक के अन्तर में प्राग्वाटश्रावकवर्ग में ऐसे अनेक वरवीर, महामात्य, दंडनायक हो गये हैं, जिनकी तलवार क्षत्रियों से ऊपर रही है। गूर्जरमहाबलाधिकारी मंत्री विमल, गूर्जरमहामात्य वस्तुपाल, दंडनायक तेजपाल, जिनके इतिहास इस प्रस्तुत इतिहास में सविस्तार दिये गये हैं प्रमाण के लिये पर्याप्त हैं। अकेले विमलशाह के वंश में निरन्तर हुये परंपरित आठ व्यक्तियों ने गूर्जरसाम्राज्य के महामात्य, अमात्य एवं
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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