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________________ खण्ड ] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर मंत्री-वंश और उज्जयंतगिरितीर्थस्थ श्री वस्तुपाल - तेजपाल दूँक :: [ १६५ १. श्री ऋषभदेव - मन्दिर – यह चौमुखा मन्दिर मध्य में बना हुआ है । इसको वस्तुपाल- विहार भी कहते हैं । महामात्य ने इसको स्वर्णकलश से सुशोभित कर इसमें भ० श्रादिनाथ की प्रतिमा विराजमान की थी तथा आदिनाथप्रतिमा के दोनों ओर भ० अजितनाथ तथा भ० वासुपूज्य के बिंब स्थापित करवाये थे । अतिरिक्त इनके शेष कार्य निम्न प्रकार करवाये थे: (१) मण्डप में : १. अपने मूलपूर्वज चंडप की एक विशाल मूर्ति । २. कुलदेवी अम्बिकादेवी की एक प्रतिमा । ३. महावीर भगवान् की एक प्रतिमा । ४. मण्डप के गवाक्षों में दाहिनी ओर के गवाक्ष में अपनी और द्वि० स्त्री ललितादेवी की दो मूर्त्तियाँ । ५. बायी और के गवाक्ष में अपनी और प्र० स्त्री सोखुकादेवी की दो मूर्त्तियाँ । (२) गर्भगृह के द्वार के :– १. दक्षिण में अपनी एक अश्वारूढमूर्त्ति । २. उत्तर में अपने लघुभ्राता तेजपाल की अश्वारूढ़ मूर्त्ति । यह मन्दिर अष्टापदमहातीर्थावतारप्रासाद के नाम से भी प्रसिद्ध है । २. श्री पार्श्वनाथदेव - मंदिर - यह चौमुखा मंदिर 'वस्तुपालविहार' के बाये हाथ की पक्ष पर उससे मिला हुआ ही बनाया गया है । इसको स्तंभनकपुरावतारप्रासाद कहा गया है। इस मंदिर के पश्चिम, पूर्व और दक्षिण में अलग-अलग करके तीन द्वार है । इसमें भ० पार्श्वनाथ आदि वीश तीर्थङ्करों की मूर्त्तियाँ स्थापित की थीं । ३. श्री महावीरदेव - मन्दिर – इस चौमुखा मन्दिर को सत्यपुरावतारप्रासाद कहा गया है। यह मंदिर वस्तुपालविहार के दाहिनी और बनवाया गया है। इस मन्दिर में भी चौवीस ही जिनेश्वरों के बिंबों की स्थापना करवाई गई थीं। इसी मंदिर में माता कुमारदेवी की तथा अपनी सात भगिनियों की मूर्तियाँ स्थापित की थीं । तीनों मन्दिरों का निर्माण वस्तुपाल ने अपने लिये और अपनी दोनों स्त्रियाँ प्र० ललितादेवी और द्वि० सोखुकादेवी के श्रेयार्थ करवा कर बाजू के दोनों मन्दिरों के प्रत्येक द्वार पर निम्नश्रेयाशय के वि० सं० १२८८ फा० शु० १० बुद्धवार को शिलालेख आरोपित करवाये थे । (१) पार्श्वनाथमन्दिर के पश्चिम द्वार पर - अपने और प्र० स्त्री ललितादेवी के श्रेयार्थ पूर्व द्वार पर - अपने और प्र० स्त्री ललितादेवी के श्रेयार्थ दक्षिण द्वार पर अपने और प्र० स्त्री ललितादेवी के श्रेयार्थ " (२) महावीर मन्दिर के पश्चिम द्वार पर - अपने और द्वि० स्त्री सोखुकादेवी के श्रेयार्थ पूर्व द्वार पर अपने और द्वि० स्त्री सोखुकादेवी के श्रेयार्थ " उत्तर द्वार पर — अपने और द्वि० स्त्री सोखुकादेवी के श्रेयार्थ इन तीनों मन्दिरों पर तीन स्वर्णतोरण चढ़ाये थे और मध्य के मन्दिर वस्तुपालविहार के पृष्ठ भाग में कपर्दियक्ष का चौथा मन्दिर बनवाकर उसमें कपर्दियक्ष और श्रादिनाथप्रतिमायें वि० सं० १२८६ श्राश्विन शु० १५ सोमवार को प्रतिष्ठित की थीं तथा एक मरूदेवीमाता की गजारूढ़ मूर्त्ति भी विराजमान करवाई थीं ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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