SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: ७ नवचौकिया के ११ सभामण्डप १ और उसकी भ्रमती के ऊपर १० । १० पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख देवकुलिकाओं के मण्डपों के ऊपर कोणों में २ और शेष ८ । ६ दक्षिणाभिमुख उत्तर दिशा में बनी कुलिकाओं के मण्डपों के ऊपर । ६ उत्तराभिमुख दक्षिण दिशा में "" "" ८. २३२ स्तम्भ हैं। २४ गूढ़मण्डप में और उसकी दोनों ओर की दो चौकियों में १२ और नवचौकिया में १२ । २६ सभामण्डप में १२ और सभामण्डप के तीनों ओर भ्रमती में १४ । ८६ देवकुलिकाओं के मण्डपों के ७८ और दक्षिण द्वारके चौद्वारा के ८ | ५८ देवकुलिकाओं की मुखभित्ति में ५२ और सिंहद्वार में ६ | १० वसति की पूर्व दिशा की भित्ति में, जिसमें हस्तिशाला का प्रवेशद्वार है १० । [ द्वितीय २८ हस्तिशाला के भीतर और उसकी पृष्ठभित्ति में । ६. ६४ वसति और हस्तिशाला दोनों के कुलिकाओं और खत्तकों के ऊपर की छत पर शिखर हैं । इस प्रकार इस विशाल वसति में ११४ मण्डप, ४६ गोल गुम्बज, २३२ स्तम्भ और ६४ छोटे-मोटे शिखर हैं । (२) मन्दिर - श्री स्तंभनकपुरावतार श्री पार्श्वनाथदेव । (३) मन्दिर - श्री सत्यपुरावतार श्री महावीरदेव । उज्जयंतगिरितीर्थस्थ श्री वस्तुपाल- तेजपाल की हूँ क महामात्य वस्तुपाल ने वि० सं० १२७७ में जब शत्रुंजयतीर्थ की संघपति रूप से प्रथम वार यात्रा की थी, गिरनारतीर्थ की भी की थी और उस समय उसने जो कार्य किये अथवा करवाने के संकल्प किये, उनका वर्णन पूर्व दिया जा चुका है । आशय यह है कि गिरनारतीर्थ पर मंत्रि भ्राताओं ने निर्माणकार्य वि० सं० १२७७ से ही प्रारम्भ कर दिया था। छोटे-मोटे अनेक निर्माण कार्यों के अतिरिक्त उनके बनाये हुए तीन जिनालय अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । ये तीनों जिनालय एक ही साथ एक पंक्ति में आये हुए हैं। मध्य के मन्दिर की पूर्व और पश्चिम की दिवारों में एक २ द्वार है, जो पक्ष के मंदिरों में खुलते हैं । इन तीनों मन्दिरों को वस्तुपाल - तेजपाल की हूँक कही जाती है । गिरनारतीर्थपति भगवान् नेमिनाथ की दूँक के सिंहद्वार, जो अभी बन्ध है के अग्रभाग में अर्थात् नरसी - केशवजी के आरामगृह को एक ओर छोड़कर संप्रति राजा की टँक की ओर जानेवाले मार्ग के दाहिनी ओर यह वस्तुपाल - तेजपाल की ट्रॅक आयी हुई है। इस दूँक में: (१) मन्दिर - श्री शत्रुञ्जय महातीर्थावतार श्रादितीर्थंकर श्री ऋषभदेव ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy