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________________ मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और मंत्री भ्राताओं का अमात्य-कार्य :: [११६ सामन्त, ठक्कुर, राजकर्मचारी सम्मिलित किया जा सकता था, जो अनेक अवसरों पर सच्चा बीर, सच्चा देशभक्त और नवराजतन्त्र का समर्थक सिद्ध होता था। अभिनव राजतन्त्र का अधिष्ठाता और प्रमुख पद्यपि महामण्डलेश्वर और राणक वीरधवल थे; परन्तु उसका संचालक वस्तुतः महामात्य वस्तुपाल ही था। महामात्य वस्तुपाल सब में बढ़कर धीर, उदात्त, चतुर, नीतिज्ञ था । देशभक्त एवं देश की रक्षा पर प्राणों की सच्ची बाजी लगाने वाले सुपुत्र कभी मानापमान का विचार तनिक भी नहीं करते, वरन् वे तो योग्यतम को अपना पथदर्शक एवं अगुवा अथवा नेता बनाकर अपना इष्ट साधने में जुट जाते हैं। विषाक्त वातावरण से पूर्ण गूर्जरभूमि की राजधानी पत्तन से दूर एक माण्डलिक राजा की धवल्लकपुर नामक राजधानी में गुर्जरभूमि की पुनः समृद्धि लौटाने के लिए अभिनव राजतन्त्र की स्थापना हुई और अभिनव राजतन्त्र के समर्थक एवं पोषक मन्त्री, दंडनायक, राजकर्मचारियों ने तथा विश्वासपात्र ठक्कुर, सामन्तों ने उस समय महामात्य वस्तुपाल का नेतृत्व स्वीकार करके गूर्जरभूमि में राजकता स्थापित करने में, साम्राज्य को समृद्ध बनाने में, विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त करने में वस्तुतः जो अपना तन, मन, धन का प्राणप्रण से योग दिया, वे वस्तुतः धन्यवाद के ही नहीं प्रलयकाल तक के लिये स्मरणीय एवं प्रशंसनीय महान विभूतयाँ हैं ।१ मंत्री भ्राताओं का अमात्य-कार्य सर्वप्रथम वस्तुपाल ने राज्य की शासन-व्यवस्था की ओर ध्यान दिया । ऐसे जीर्णाधिकारी तथा ग्रामपतिर जो कई वर्षों से राज्यकर भी राजकोष में नहीं भेज रहे थे तथा अपनी मनमानी कर प्रजा को अनेक प्रकार से तंग . करके अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे वे या तो निकाल दिये गये या बड़ी २ सजायें महामात्य का प्राथमिक कार्य _देकर उनका दमन किया गया। इस प्रकार राज्यकोष में कई वर्षों का कर और दंड रूप में प्राप्त धन की अपार राशि एकत्रित हो गई और वह तुरन्त ही समृद्ध बन गया। दंडनायक तेजपाल ने इस . धनराशि का उपयोग सैन्य की वृद्धि करने में, उसको समर्थ और सुसज्जित बनाने में किया। शीघ्र ही एक सबल और . ?-'It was harrassed by enemies without and within, Gujrat had triumphed by the valour of Veer Dhawala, the loyalty of Lawan prasad, and the statesmanship of Vastupal and the wise Somesvara had succeeded beyond his dreams.' Of them four, Vastupala was the greatest. Under his careful ministry Gujrat became rich. G.G. Part 1|| P.217.218 २-ध्यात्वेति सचिवो ज्येष्ठो दुष्टं,जीर्णाधिकारिणम् | लम्चाप्रपत्रितश्रीकं कसेंजपगणाधिपम् ।।१५।। दण्डयित्वा बृहद्रम्मशतानामेकविंशतिम् । विनवं ग्राहयामास कुशिष्यमिव सद्गुरुः॥१६॥ तन्ययेनाकरोत्सारभटाप्यादिवलं कियत् ।" ............||१७॥ ततब सैन्यसामर्थ्याद्धनमन्यायकारिण।। अमोचयदयं ग्रामपामण्याश्चिरसंचितम् ॥१EI १००वि०प्र०पू०१५
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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